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[ १९६ ] (१०) कुका सम्राट अकबरप्रतिबोधक श्री जिन (११) चन्प्रसूरि पाडका नवीनालये चक्रेश्वरी मू (१५) तिश्च श्रीवृहत्खर० गलीय गणि श्रीर (१३) स्नमुनि यतिवर्य श्रीवृद्धिचन्ऽन्यः प्र(ति)स्था। (१४) पता ॥ पुनस्यशीत्यवस्थित जिन बिंद्यानि (१५) प्रतिष्ठाप्योर्ड स्थापितानि ॥ नूयाच्च मू (१६) तिः कुशलाख्यसूरेः सत्पाका श्रीजिन (१७) चन्द्रसूरे श्रीसंघरनाकर वृद्धिचान्या न (१७) कात्मवांबापरिपूरकाय ॥ १ लि । लक्ष्मी (१५) न्यु ॥ लाबुखां बद जादमखो मेणुना कृता ।
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EEEEEEEEEEET ॥ श्री जैन.लेख संग्रह तृतीय खण्ड समाप्तः ॥
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"Aho Shrut Gyanam"