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पट्टावली पट्टक। *
श्रीमहावीर ॥१
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( १) श्रीअनूति १ (२) श्रीअग्निति ५ (३) श्रीवायुजूति ३ (४) श्रीव्यक्त ४ (५) श्रीसुधर्मस्वामि ५ (६) श्रीमंडित ६ (७) श्रीमौर्य पुत्र
# यह शिलालेख मंदिर के उत्तर तरफ दीवार के सहारे रखा हुआ है, परन्तु खेद है कि असावधानता के कारण टूट गया है। मालूम होता है कि शिला को लम्बाई अधिक होने से, और किसी स्थान पर जमा कर सुरक्षित नहीं रहने से ऐसी दशा हुई है। इसकी लम्बाई अन्दाज़ ४ फीट और चौडाई १॥ फीट से कुछ अधिक है। मेरे आजतक जितने शिलालेख देखने में आये हैं और जितने अन्यत्र प्रकाशित हुए हैं उनमें से किसी में भी अपने पट्टावली का शिलालेख देखने में नहीं आया है। इस शिलालेख में श्री महावीर स्वामी से लेकर श्री देवार्द्धगणि क्षमाश्रमण तक आचार्यगण और उनके शिष्यों के नाम चरण सहित खुद्दे हुर हैं। श्री महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् ६८० वर्ष व्यतीत होने पर श्रीदेवद्धि गणि जी जैनागम को पत्रारूढ़ लिये थे। इन के विषय में श्रीकल्पसूशादि में जो कुछ संक्षिप्त परिचय मिलते हैं इस के अतिरिक्त मुझे अद्यावधि कोई विशेष इतिहास ज्ञात नहीं है। शिलालेख में कुल वरणोंकी समष्टि १०६ है, परन्तु देवर्द्धिगण के नाम के बाद ७, १० खुदा हुआ है, यह संकेत समझ में नहीं आया। इस के सिवाय शिलालेख के आदि में दक्षिण तरफ नीचे के भाग में तीन कोष्ठक में अष्ट मङ्गलिक खुदे हुए हैं, और मध्य में तीन कोष्टक में यथाक्रम से ६,८ और ६ पखड़ियों के कमल सुने हुए हैं, और एक कोष्टक में स्वस्तिक है, अन्त में दो कोष्टक में नंद्यावत्ते और स्वस्तिक है। परन्तु लेख में कोई संवत् मिति अथवा प्रतिष्ठा करने वाले आचार्य या करानेवाले कोई श्रावक अथवा खोदनेवाले का नाम अथवा प्रतिष्ठा स्थानादि का उल्लेख नही है।
"Aho Shrut Gyanam"