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( १ ) सं० १६७३ मार्गशीर्ष सु
( ३ ) याहरुकेण श्रीसंज |
( ५ ) मेघराज पोत्र जोज
( ७ ) धमकारि । प्र० श्री
मंदिर नं० ४
मूलनायकजी पर |
[ 2572] +
( १ ) ॥ श्रीलोडवा नगरे | श्रीवृहत्खरतरगष्ठाधीशैः ॥
(२) सं० २६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ तिथौ गुरौ जांडशाक्षिक सा० श्रीमल जा० चांपलदे
पंक्ति २ में
६ में
* मंदिर के तोरण स्तंभ पर आठ पंक्तियों का यह लेख है। हैं । यह G. O. S. No. 21. के परिशिष्ट नं० १२ में छपा है । वे इस प्रकार हैं :
इसके
:
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में
[११]
स्तंज पर ।
[ 2571] *
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८ में
( २ ) दि ए जयसाली सं० ।
( ४ ) वनाथ देव गृहं पुत्र
( ६ ) राज सुखमच पुण्या ( 6 ) जिनराजैः
'सं०'
'सुखमल'
'कारि
'जिनराजे : '
है; G.O.S. में 'संघवी' छपा है ।
है :
में 'सुखम ( ? )स्य' छपा हैं ।
हैं
में छूट गया है ।
है;
में 'जिनराजसूरिभिः' हैं ।
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इसकी लम्बाई ८ इंच और चौड़ाई ७ इंच पाठ से मूल पाठ में कई जगह अंतर है।
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1. मूल मंदिर के बांये तरफ उत्तर दिशा में यह मंदिर है। इस में मूलनायकजो की श्याम पाषाण की बड़ी aai aantarat मूर्ति प्रतिष्ठित है। मूर्ति की चरण चौकी पर यह लेख खुदा हुआ है। यह G. O. S. No. 21. के परिशिष्ट नं० ७ में प्रकाशित हुआ है ।
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"Aho Shrut Gyanam"