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[१५४ ] (१ए) जी गणि प्रमुख साधू गणे ४१ या ठाणे दिव रुपोया १०) दस रोकड
थांन प्रत्येके प्रत्येके दोना तथा परगछ के यतीयां को सतकार श्राबी
तरे कीनो श्रीसिर ॥ (२७) कार की परांवणी कीनी घोडा सिरपाव वगेरे मोंको निजराणे कोनो
मुसंदी वगेरे गवां गवां सर्व ने सिरपाव दीना सेवकां में जिणे दोन
रुपोया ४) च्या (१) र तो सर्वाले दिना कीतरांक जिणांने सोने का कडा तथा थान वगेरे
सिरपाव दीना श्रीजिनमसूरिसाखायां पं ॥ प्र ॥ श्रीमयाचंजी गणि
तत् शिष्य पं ॥ स(२५) रूपचंऽजी मुनी श्रीजेशलमेरु आदेसी नां श्यं प्रसस्ती रचिता कारिगर
सिलावट वीराम के हाथ सुं श्रीमंदिरजी वणिया जीण के परिवार नां
सोने की कंठीयां (५३) तथा कडा की जोड़ीयां तथा मंदील तथा कुपटा यांन वगेरे सोरपाव
दीना श्रीमंदिर के मुल गंजारे में आसेपासे दिषण नी तरफ परतापचंद
जी की षड़ी मुरती बै उ(२४) तर की तरफ परतापचंद जी को नारजायां की खड़ी मुरती है निज
मंदिर के सामने उगूण को तरफ पलम मुषो चोतरी कराय जिण उपर परतापचंदजी की मुरती
"Aho Shrut Gyanam"