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[ १५३ ] (१३) हेजसूरिचरणपादुका प्रमुख स्थापितं तथा नाई सवाईरामजी के घर का
श्वे था श्रीरतलाम सुं चिरूं सोनागमल चांदमल सोनागमल की मांजी
वगेरे थाया श्रीउदे. (१४) पुर सुं चिरूं सिरदारमल तथा इणां की मांजो वगेरे आया ओर पण
घणे दिसावरां सुं श्रीसंघ आया सांमीवबन्न प्रमुष करी श्रीसंघ की बड़ी
जक्ति कार तथा पांच ( १५) शिष्या में श्रीपूजजी म्हाराज के हाथ से दीक्षा दिनी जी दिन १५
सुधां श्रीअमरसागर में रह्या वडो गठ श्रोष्ठव सुं नित्य नवि नवि पूजा
प्रनावना हुई श्रीदरबार साहिब (१६) श्रीमंदिरजी में पधारीया तोबां का फेर हुवा पग में सोनो बगसोयो फेर
श्रीसंघ समेत श्रीजेशलमेर आया नजमणा प्रमुख कीना श्रीपूजजी म्हा
राज की (१७) पधरावणी दोय कीनी (जण में हजागं रुपीयां को मान इसबाब तथा
रोकड जेंट कीनो उपाध्यायजी वगेरे गवां गशं गणां ने तथा श्रीवणा
रसवाला उपाध्याय (१७) जी श्रीबालचंद्रजी का पेशा नै रोकड रूपीया तथा साल जोड़ तथा
कपड़े का यान वगेरे अलग अलग दीना उपाध्याय जी श्रीसाहेबचंद्रजी
गणि पं० प्रमेर39
"Aho Shrut.Gyanam"