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वेगड़गच्छ का उपासरा।
शिलालेख ।
[2446 ] * (१) ॥ ॐ ॥ ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ श्रीवागमेशाय नमः (२) ॥ संवत् १७०१ वर्षे शाके १६४६ प्रवर्त्तमाने महामांगट्यप्रदो (३) मासोत्तम चैत्र मासे लीलविलासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां । (४) गुरुवारे उत्तरा फागुनीनक्षत्रे वृजिनामयोगे एवं शुजदि(५) ने श्रीजेसलमेरुगढ़ महाउगें राउल श्री ५ अषैसिंहजी विजैराज्ये (६) श्रीखरतरवेगडगळे नहारक श्रीजिनेश्वरसूरिसंताने जहारक (७) श्री जिनगुणप्रनुसूरिपट्टे न0 श्री जिनेशरसूरि तत्पट्टे जट्टारक श्री ५ (७) जिनचंडसूरिपट्टे नट्टारक श्रीजिनसमुप्रसूरि तत्पट्टालंकारहार सा. (ए) रजट्टारक श्री १०७ श्रीजिनसुंदरसूरि तत्पट्टे युगप्रधान नहारक श्री (१०) ७ श्रीजिनउदयसूरि विजयराज्ये प्राज्यसम्राज्ये ॥ श्रीरस्तुः ॥ श्रीः ॥
[2447 ] + (१) ॥ श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ संवत् १६ चैत्रादि १३ वर्षे जेठ सुदि (२) १५ सोमवारे मूलनक्षत्रे । श्रीजेसलमेरुनगरे राउत श्रीक
* उपासरे के बाहर बायें दीवार पर यह शिलालेख लगा हुआ है। (१. O. S. के परिशिष्ट में यह प्रथम छा था परन्नु भ्रमश दो नंबर में प्रकाशित किया गया है। नीचे का अंश नं० २० में तथा ऊपर का नं० २१ में है।
यह शिलालेख भी वहीं बाहर के दीवार पर लगा है और बीच से टूट गया है। यह (5. .5. के नं0 में छपा है।
"Aho Shrut Gyanam"