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[३६] (२) दप्रसादा विघ्नानि नश्यंतु नवेच्च शांतिः ॥ १॥ संवत् १५७३ वर्षे मागसिर सुदि (३) ११ दिने श्रीजेसलमेरुमहाउग्र्गे राउल श्रीचाचिगदेवपट्टे राजन श्रीदेवकरण (४) पट्टे महाराजाधिराज राउल श्रीजयतसिंह विजयिराज्ये कुमर श्रीलूणकर्णयुव(५) राज्ये श्रीफकेशवंशे श्रीसंखवालगोजे सं० आंबा पुत्र सं० कोचर हूया। जिण
कोरंटई (६) नगरि अनइ संखवाली गामश् उत्तंगतोरण जैनप्रासाद कराव्या। बाबू जीराउल
श्रोसंघि (७) सुं यात्रा कोधी । जिण आपण उदारगुण आपणा घरनउ सर्व धन लोकनां
देई कोरंट कर्ण (७) नामना लीधा । संग कोचर पुत्र सं० मूत्रा तत्पुत्र संग रउता संग हीरा। सं० रजला
नार्या सं० माणिकदे (ए) पुत्र संग आपम सं० देपमछ । सं० पापमय नार्या कमलादे पुत्र सं० पेथा सं०
जीमा सं० जेठा सं० पेथा (१७) नार्या पूनादे पुत्र सं० आसराज सं० मूंधराज पुत्रिका स्याणी । सं० आसराज
श्रीशत्रुजयमहातीथि (११) श्रीसंघ सहित यात्रा करी आरणा वित्त सफइ कोधा । सं० पासराज नार्या
चोप सं यांचा पुत्री गेली (१५) जिण श्रीशत्रुजयगिरनारबाबूतीर्थ यात्रा कोधी । श्रोशत्रुजयादि तीर्थावत.र
पाटी करावी सतोर
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का और ऊपर के तले में श्री शांतिनाथ जी का मंदिर है। यह प्रशस्ति अष्टापदजी के मंदिर में लगी हुई नहीं है परन्तु श्री शांतिनाथ जी के मंदिर के बाहर में है।
"Aho Shrut Gyanam"