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[३५] चौवीसी पर।
[21521 संवत् १५१३ वर्षे वैशाख वदि प्राग्वाट झातीय व्यव हापा नार्या रूपी सुत राणा केन नार्या राजू सुत पेयादिकुटुंबयुतेन स्वश्रेयोर्थ श्रीकुंथुनाथादिचतुर्विंशतिपः कारापितं प्रतिष्ठितः तपागच्छेश श्रीसोमसुंदरसूरिशिष्यश्रीरत्नशखरसूरिनिः॥ शुभं भवतु श्री॥
आचार्य की मूर्ति पर।
12158] ॥ संवत् १५३६ वर्षे फाल्गुन सुदि दिने श्रीखरतरगबनायक श्रीजिनराजरिपट्टासंकारहारश्रीजिनजप्रसूरिराजानां प्रतिमा । श्रीसंघेन श्रेयोर्थ कारिता प्रतिष्ठिता श्रीजिनचंअसू रिपट्टे श्रीजिनसमुप्रसूरिनिः ॥ श्रीकमलससहोपाध्यायशिष्यश्रीमुनि उपाध्याय..
श्रीशांतिनाथजी का मंदिर।
प्रशस्ति ।
{2154 ]. ११) ॥ ॐ ॥ स्वस्ति ॥ श्रीपार्श्वनाथस्य जिनेश्वरस्य प्रसादतः संतु समो हितानि ।
श्रीशांतिनाथस्य प
* यह लेख ४५ पंक्तियों का पीले पाषाण में खुदा हुआ है । इसकी लम्बाई २ फुट ४ इञ्च और चौड़ाई ? फुट ४ इञ्च है । इस लेखका कुछ अंश भण्डारकर साहेब के रिपोर्ट १९०४-५ और १९०५-६ के नं०५४ में प्रकाशित हुआ था। यह G. O. S. No. 21 के परिशिष्ट के नं०५ में सम्पूर्ण रूप से आया है। यह मंदिर दो महला पत्थर का बना हुआ है। इसके नीचे तले में श्री अष्ठापदजी
"Aho Shrut Gyanam"