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प्रशस्ति नं० ४
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( १ ) ॥ ॐ ॥ ई ॥ परमैश्वर्यधुर्याय नमः श्रीश्रार्श्वसेनये । पार्श्व ( २ ) नाथाईते नक्त्या जगदानंददायिने ॥ १ ॥ अमितशतदाता ( ३ ) विश्वविख्याततेजाः परम निरुपम श्रोप्रीणितास्त्येक लोकः । स ( ४ ) कल कुशलवली मातनोतु प्रजानां चरणनंत सुरेंद्र: श्री सुपार्श्वो
( ५ ) जिनेंद्रः ॥ २ ॥ समुप (1) स्य जिनवरेंद्र निजगुरु विशदप्रसादतः सम्य ( ६ ) कू । शस्तप्रशस्तिमेनां लिखामि संक्षेपतः सारां ॥ ३ श्रीमजेसलमेरु
पट्टक नं० १
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राजनश्रीवयरसिंहपुत्रराजञ्जश्रीचा चिगदेव विजयिराज्ये विक्रमात् सं० १५१० वर्षे वैशा सुदि १० दिने नाइटासमरापुत्र सं० सजाकेन सं० सासदे सेढा राणा जावड जावक सं० सोई। शंभूवीजूप्रमुखपुत्रपुत्रिकादिपरिवारसदितेन श्रीमंडोवरनगरवास्तव्येन जासूदबदेपुण्यार्थं श्रीनंदीश्वरपष्टिका कारिता प्रतिष्ठिता खरतरगछे श्री जिनचंद्रसूरिनिः ॥
यह लेख मंदिर के रंगमंडप में दक्षिण तरफ दीवार पर लगा हुआ है। इसकी ११॥ फुट लम्बाई और ५|| फुट चौड़ाई हैं । G. O. S. No 17.
मंदिर के सभामंडप के दाहिने तरफ श्रीनंदीश्वर द्वीपादि के भाव सहित पीले पाषाण में चार विशाल पट्टक खुदे रक्खे हुए । इन सभों की कारीगरी देखने योग्य हैं। लेखों का कुछ अंश उपरि भाग में और कुछ अंश नीचे खुदे हुए हैं। ये चारों शिलापट्ट प्रायः एकही साइज़ के हैं और खड़ाई, चौड़ाई लगभग ६ फुट, शा फुट की है। इनमें से G.O.S. में तीन का ही लेख छपा है. जिसमें स्थान का निर्देश नहीं है और पाठ भी छूटे हुये हैं। यहां चारों लेख सम्पूर्ण पाठ के साथ प्रकाशित किये गये हैं।
"Aho Shrut Gyanam"