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________________ प्रशस्ति नं०३ [2114 ] * (१) ॥ ॐ ॥ स्वस्ति श्रीफकेशवंशे गणधर गो (२) त्रे सा रत्नसिंहः स्थापितं खस्ति श्रीसुपार्श्व (३) नाथ श्रीजिणराजपाटे श्रीजिनजासूरिनिः सर्व (४) लक्षणसंयुक्त राज्यं भवति । ककेशवंशे गणधर गो (५) त्रे साह रत्नशह सुत गजशंह तत्पुत्र साप नाथू लार्या (६) धनी तयोः सुन सा पासड ज्रातृ सचा सुश्रावकेद्भवतिः (७) सा पासम नार्या प्रेमलदे सुतु(त) जीवंद साह सचा नार्या सिं (७) गारदे नंदन धर्मसिंह जिणदत्त देवसिंह जीमसिंह सपरिवा (ए) रेण । संवत् १४५३ वर्षे फागुण वदि प्रतिपदादिने श्रीसुग (१०) श्वनाथ बिंध सुपरिकर विधाय(:) प्रतिष्ठितं पूजनीयार्थे श्री (११) संघसहितेन राज श्रीवयरशंहराज्य स्थापित (१५) श्रीसंघसमुदायः पूज्यमानं चिरं (१३) नंदय तिः * यह लेख मंदिर के रंगमंडप में दाहिने ओर दीवार पर लगा हुआ है। भण्डारकर साहेब के १९०४-५ और १०६ रिपोर्ट के प्र. ५,०५० में इसका कुछ अंश छपा है। यह १३ पंक्तियों का लेख बड़े अक्षण में चतुष्कोण पाषाण पर खुदा हुआ है और इसकी खड़ाई, चौड़ाई १ फुट ५ च है। इस लेख में कई जगहःअशुद्धियां हैं, वे प्लेट से स्पष्ट मालूम होगा। जैसे:- पंक्ति ४ में राज्यं” के स्थान में राय," ६ में “ सुत " . सत" , ७ में “ भ्रातृ " , , , “भात्रि," में "सुपरिकर" " सुपरिगिर,” में "सहितेन" " सहतेन,” में “समुदायः" “ समदायः" इत्यादि अशुद्धियां है। 龙海市市 "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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