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________________ ( २६ ) आचार्य श्री तिहुणकीर्ति गुरूपदेशेन हुंवड़ जातीय व्या बाहड़ जार्या लाठी सु० व्य० षीमा जार्या राजूस देवि श्रेयोर्थ सु का देवा आर्या राजुल देवि नित्यं प्रणमन्ति । [1136] सं० १४३० वर्षे वैशाष वदि ११ सोमे प्राग्वाट ज्ञातीय श्रेष्ठि गोहा नार्या सखतादि सुत मूजाकेन । पितृत्रातृश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ का० प्र० श्री रत्नप्रन सूरीणामुपदेशेन । [ 1187 ] सं० २४३ए वर्षे पौष वदि ए सोमे श्री ब्रह्माण गछे श्री श्री मा पितृ माषसी जान मोषलदे प्र० सुत सोमलेन श्री शान्तिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री बुद्धिसागर सूरिनिः ॥ श्रीः॥ [ 11381 सं० १४६५ वर्षे ....... श्रात्मार्थं श्री शान्तिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री ....... | [ 11301 - सं० १४६ए वर्षे जकेशवंशे नवक्षषा गोत्रे साप साघर यात्मश्रेयसे श्री आदिनाथ बिंबं कारितं प्रति खरतर गण । जिनचन्डेण ...स्तव्य । [11401 संवत् १४७ए वर्षे पास सुदि १५ शुक्र श्री दुवड़ झातीय द्यावेमा गलनयोः पुत्रेण धान हापाकेन वज्रातृ यावड़ा मुलासी श्रेयसे श्री शान्तिनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री वृहत्तपागले श्री रत्नसिंह सूरिभिः ॥ शुभं भवतु ॥ श्री ॥ ७ ॥ ___ [1141] सं० १४ए४ माह सु० ११ गुरौ श्री संमेरगडे 30 श्रा० संवामि गौष्टिक सा० सुरतण पु० धर्मा ना० धर्मसिरि पु० वासलेन ना कानू पुरा नापा नादा स० पित्रोः श्रेयसे श्री श्रेयंस तु. का० प्र० श्री शान्ति सूरिनिः शुलं । "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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