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________________ [tio] संवत् १६ए४ वर्षे वैशाष . . श्री अनन्तनाथ विंबं का प्र० च तपगठाधिराज जहारक श्री विजयदेव सूरिनिः॥ स्वोपाध्याय श्री लावण्यविजय गणि का जप ... [1100] सं० १७३ सा तेजसी कारिता श्री विमलनाथ बिंब ... । [1110 ] संवत् ... जीवा पु० सीहड़ जार्या श्रीया देवि पु राजापाल प्रजापाल श्री श्री श्रादिनाथ विवं का० प्र०. श्री वर्धमान सूरिनिः ॥ [1111 ] * ।। सं० १४५३ श्री ज्ञानकीय गर्छ । सा बाहड़ ना प्रमी गु० पाल्हा लोलान्यां श्रद्धप्रा ( ? ) कारिता ॥ श्री वासुपूज्यजी का मन्दिर । धातु की पञ्चतीथियों पर। [1112 ] संवत् १५०६ वा ऊकेश सा बन्चराज सु० सा हीरा ना हेमादे इरसदे पुण् साण जगा ना० फफु " श्रेयसे श्री शीतल विंबं कारितं प्रतिष्ठितं सपा श्री रत्नशेखर सूरिनिः श्री देवकुलपाटक नगरे। [1113 ] सं० १७४२ वर्षे ज्येष्ठ सु० ५ गुरुवार सुराणा गोत्रे सा चेतन पु० नारायण "" सुण लीला ."" गोकलदास "" श्री चन्उपज विवं कारितं । * यह मूर्ति देवी की है और बाहन घोड़ा है। ... ... .. "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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