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________________ ( ५ ) सैंतीया ( वीरभूम) श्री आदिनाथजी का मन्दिर। धातुकी पञ्चतीर्थी पर। __ [1018] संवत् १५५३ वर्षे वैशाख वदि ४ गुरौ श्रीएसवंशे दो वरा नार्या मेघू पुत्र जश्ता सुश्रावकेण नाप जीवादे त्रातृ जटा सहितेन खश्रेयसे ॥ श्रीअंचलगन्छेश्वर । श्रीजयकेसरि सूरीणामुपदेशेन श्रीधर्मनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन श्री पत्तने ॥ ॥ रङ्गपुर (उत्तर बङ्ग) श्रीचन्नप्रजखामी का मन्दिर-माहीगञ्ज । शिक्षा लेख नं १ [1017] * (१) अत्यद्भुतं सजान सिद्धिदायकं जव्यांगिना मो (२) दकर निरन्तरं जिनालये रङ्गपुरे मनोहरे चन्द्रप्रनं (३) नौमि जिनं सनातनं ॥ १॥ संवत् १७७३ मि । माघ वदि । र (४) वो श्रीरङ्गपुरे । न । नीजिन सौजागा सूरिजी विजयी। (५) राज्ये वा । आनन्दवनगणरुपदेशात् श्रीमद्भुदावा (६) द बालूचर वास्तव्य पू। निहालचन्द तत्पुत्र बाबू इन्प्रच० (७) न्प्रेण श्रीचन्प्रन जिनः प्रासादः कारापितः प्रतिष्ठापि (७) तश्च । विधिना ॥ सतां कल्याण वृष्यर्थम् ॥ (ए) श्रीरस्तुः ॥१॥ * यह शिलालेख श्याम वर्णके पत्थर पर लंबाई च-१४ चौड़ाई इश्व-६ सभामण्डप के दक्षिण तर्फ की दीवार पर लगा हुआ है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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