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________________ (२६५) ( ३) शे। मकसुदावादाजीमगंज वासिनी उधेड़िया (४) मोत्रे श्री नेमिचंद्र तस्य नार्या महताब कुमारि(५) या कारापितं च श्री हर्षचंदजी तत् पुत्र बुधसीह (६) विसनचंडेण प्रतिष्ठा कारापिता । श्री वृहद्धापक (७) गोर्जराधिपति श्री अखयराज सूरि तत्पट्टालंकृ (७) त् श्री अजयराज सूरिणा प्रतिष्ठितं श्री शुनं नूयात् । (ए) ॥ श्लोकः ॥ जवारएयगोपालक त्रैशलेयं । जाबोधि(१०) संस्तारणे यानतुल्यं । मुक्तिस्त्रिनाथं मयायं जिनें (११) प्रसंस्तौमि श्री वर्धमानं वितुं च ॥१॥ गांव मंदिर। दक्षिण तर्फ के दिवार पर का लेख । [2035] ११) श्री गांव मंदिर जि मे दक्ष (२) ण पश्चिम उत्तर दालान (३) तथा चारो कोठे मे पत्थल (४) जैन श्वेताम्बर अंडार के तर (५) फ से मैनेजर गोविंदचंद सुचं (६)ति विहारवालो ने बैठाया सुन (७) संग रए६४ आसिन बाद ५ सजा मंमय के दाहिने तर्फ के श्राले का लेख । 2036] (१) श्रीमदविर जानें प्रणम्य श्री पावापुपी नगरी मधे आ श्री जिन (२) बीब स्थानापन करोती स्वेतांबर आमनाय धारक शा० रूपचंद "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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