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________________ ( १२६ ) ( २ ) नाथ त्रिं कारितं प्रतिष्ठितं श्री जिनसागर सूरीणां निदेशेन व शुनशील गणिनिः चरण पर । [1847 || नमः ॥ संवत् १०१७ वर्षे माघमासे शुक्लपदे ६ तिथौ श्री चंद्रप्रन जिनवर चरणकमले शुने स्थापिते || हुगली वास्तव्य यांसवंशे गांधी गोत्रे बुलाकिदास तत्पुत्र साद माणिक चंदेन पत्री कुंडे कुंडघाटे जीर्णोद्धार करापितं ॥ १ ॥ वैजार गिरि । चौथे मंदिर में । चरणों पर । [ 1848] श्री ( १ ) संवत् १९३० वर्षे शाके १८०३ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे ( २ ) शुने ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे द्वादशी गुरुवासरे ( ३ ) गिरिशिखरे श्री जिनचैत्यालये मूलनायक श्री ( ४ ) महावीर जिन चरणन्यासः प्रतिष्ठितं श्री तपागछे बृद्धवि (५) जय थापीतं (डू ) साद बाहादरसंह प्रताप(६) सिंह तत् पुत्र राय लखमीपत धनपतसिंग ( 3 ) चाहाद (र) जिरणोद्धार करापितं श्री रस्तु ( ८ ) । प्रथम प्रतिष्ठा संवत २०७४ शा० १७३० मासो ( ९ ) तमासे शुजे ज्येष्ठमासे कृष्णपक्षे पं(१०) चम्यां तिथौ सोमवासरे श्री जिनवन्द्र ( ११ ) सूरिजी महाराज का० श्री । "Aho Shrut Gyanam" व्यवहार
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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