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________________ ( १७ए ) माङ्गरोल-काठियावाड। पाषाण की मूर्ति पर। [1785 ] * १। ॥ सं० १५५३ वर्षे आषाढ़ सुदि ४ शनौ ३० चाविगन मदं वचराजे(न आत्म श्रेयोर्थ श्री मुनिसुव्रतस्वामि प्रतिमा । कारिता प्रतिष्ठिता च श्री देवना सूरि शिष्यैः श्री जिनचन्द्र सूरितिः ॥ वेरावल-काठियावाड। शिला लेख। [1788 ] + १। ........ निवनाति नित्य मद्यापि वारिधौ ॥ श्रे(?) प्रपा(सा) दनीष्ट संसिद्धये मुखं चन्द्रप्रनं .... । ...... स पाटकान्यं पननं तद्विराजते ॥३॥ मन्ये वेधा विधायत विविधित्सुः पुनरीह .... दे ३। ......... रेन्जैनत्रयमंत्रर्यत्रखदमीः स्थिरीकृता ॥ ५ ॥ तन्निःशेषमहीपालमौली: घृष्टांशि ४। सौ नृपः। तेनोखातासुन्मूलो मूलराजः स उच्यते ॥ 3 ॥ एकैकाधिकपाला सम .... ५। .... सबजखुराहत । अतुन्छलत्युयं पर्वज्रममजीजनत् ॥ ए ॥ पौरुषेण प्रज्ञापन पुण्येन ... * यह लेख रावली मसजीद के पास खुदाई में निकली हुई मूर्ति के चरणचौकी पर है। • यह लेख वहां के फौजदारी उतारे में रखा हुआ है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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