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________________ (१७) २५। विजयदेव सूरीश्वर प्रसादात् । १६ । चिरं तिष्टतु । शिवमस्तु सकल सं२७। घस्य ॥श्री॥ श्री॥श्री॥ आदिनाथ २७। श्रावां कृतः । प्रासादनाम विजयषणः प्रासादः । Paare & I तालाजा-काठियावाड । पाषाण के चरणचौकी पर। [1788 ] * जै सं० १३०२ वैशाख सु०३ धपक्षकका वास्तव्य उ० पदमसीह सुत उ जाला 0 मदन जयता तेन ॥ ७ मदन जाय उष्मा देवी श्रेयोर्थ सुत उ० पाहणेन श्री महा. वीर बिवं पट्टकं च प्रतिष्ठितं श्राचार्य श्री माणिक्य सूरिनिः। [1784] है। संभ १५१ए वर्षे दएड श्री धांध प्रभृति पञ्चकुलन श्री मुनिसुव्रतस्वामी देवा । ..." णि ..." पा विशेषपूजाप्रत्ययमएड पिकायां प्रतिवर्षी हो ३। ..." 5 (२) ४ चतुर्विंशतिधम्माः । ६० खबमादेश. । बहु निर्वसु ४। [धा जुक्ता] राजनिः सगरादिनिः । यस्य यस्य यदा मि तस्य तस्य ५। तदा फलं ॥१॥ तथा समस्तप्रमदाकुलाय अ .... पूर्णिमादि ६। " (रके) ४ चत्वारि उमाश्च ॥ पञ्चकुलसमदे देवद.... ।.."७४ पीजामः ३व रक्षपटा -मबाय * यह लेख तलाज़ा से पूर्व में हजूरापीर की कबर से मिली हुई मूर्तिरहित पाषाण की चरण चौकी पर है और भावनगर वान्टुन लारो के म्युजियम में सुरक्षित है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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