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________________ ( १७४) [1778 ] * & ॥ सं० १३०० वर्षे वैशाष वदि ११ बुधे श्री सह जिगपुर वास्तव्य पही। ज्ञातीय व० देदा नार्या करदेवो कुदिसंबूत परीछ महीपाल महीचन्छ तत् सुन रतनपाल विजय पानिजवज शंकर जाया कदमी क्षिसंजूतस्य संघपति मुधिगदेवस्य निजपरि. वार सहितस्य योग्यं देवकुलिकासहित श्री मलिनाथ विंचं कारितं प्रतिष्ठितं श्री चन्द. गठीय श्री हरिप्रन सूरि शिष्यैः श्री यशोना सूरिनिः ॥ ॥ मंगलमस्तु ॥ ॥ [1779] * सं० १३१५ फागुण वदि ७ शनी अनुगधा नक्षत्रे अद्यद श्री मधुमत्यां श्री महावीर देवचेत्ये प्राग्वाट ज्ञातीय श्रेष्ठि बामदेव सुन श्री सपान सुन गंधि चिवाकेन श्रात्मनः भूयोर्थ श्री पार्श्वनाथ देव विब कारितं चन्द्रगछे श्री यशोज सूरिनिः प्रतिष्ठितं । [1780] * __ सं० १३५० माघ सुदि ....गुरो प्रारबाट ज्ञात ......."प्र व्या वीरदत्त सुत व्य जाला नार्या माविकया स्वश्रेयोर्थ रांकागलोय श्री महीचन्द्र सूरि नि: महाबोर चैत्ये मी श्यनदेव विंबं कारितं । * वहां के गोरखमएडी में भोयरे के पास पड़े हुए मर्तियों पर ये देख हैं। TENSISTER "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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