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________________ ( १७ ) [ 1763] सं० १६५१ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ४ गुरी दो० वेधराजकेन निजश्रेयसे श्री शान्तिनाथ बिध कारितं प्रतिष्ठितं च तपापदे श्री हीरविजयसूरिश्वरैः नार्या मोलादे सुत धनजी प्रमुखकुटुम्बयुनेन श्री दीवचन्दिर वास्तव्येन ॥ श्री रस्तु ।। 1781 सं० १६५६ घर्वे फाल्गुण वदि ५ गुरौ दीववन्दिर वास्तव्य ओसवाल ज्ञातीय बाई मनाईकया निजश्रेयसे श्री सम्नवनाथ विवं काग्तिं प्रतिष्ठितं च तपागबाधिराज परमगुरु श्नी ६ विजयसेन सूरिनिः परिकरसादतः । शत्रुजय तीर्थ। दिगम्बर मन्दिर। श्री शान्तिनाथजी की मूर्ति पर। [ 1765 ] * सं० १६०६ वर्षे वैशाप सुदि ५ बुधे शाके १५५१ वर्तमाने श्री मूलसंधे सरस्वतीगळे बलात्कारकगणे श्री कुंदकुंदान्वये नहारक श्री सकलकीर्ति देवास्तपट्टे न श्री वनकीर्ति देवास्तत् पट्टे न श्री ज्ञान जूषण देवास्तत्पट्टे जा श्री विजयकीर्ति देवास्तत्पट्टे जण श्री शुभचन्द्र देवास्तत्पढे ज० श्री सुमतिकीर्ति देवगस्तत्पढे ज० श्री गुणकीर्ति देवास्तपट्टे जय श्री वादिषण देवास्तत्पट्टे न श्री रामकीर्ति देवास्तत्पटे लण् श्री पद्मनन्दि गुरूपदेशात् पादशाह श्री साहजाद विजयराज्ये श्री गुर्जरदेशे श्री अहमदाबाद वास्तव्य हुँबड़ ज्ञातीय वृदछाखीय वाग्बर देश स्थातरीय नगर नौतननप्रसादोहरणधारजाज (?) संग जोजा जाए सं० खकु संग संवस्ता ना० संघ रनादे तयोः सुत ब्रह्मचर्यवतप्रतिपासनेन * यह लेख “जैन मित्र" माघ वदी २ वीर सं० २४४७ के अङ्क से मिला है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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