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________________ ( १५० ) [1758] सं० १९२१ वर्षे वैशाख सुदि ६ बुधे श्री श्रीमाल ज्ञातीय दो० गोपाल जा० सखी सु० पोमाकेन जा० कमकू श्रेयोऽर्थं श्रीसुमतिनाथ त्रिंवं कारितं श्री पूर्णिमापक्षे ज० श्री सागरतिलक सूरि पट्टे ज० श्री गुणतिलक सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं । [1759] सं० १५३१ वर्षे मात्र वदि छ सोमे श्रीमान ज्ञातीय शा० राजा जा० राजब्दे सुब सब शाद शिकूया जाय राजाई तथा सु० पासा जीवायुतया खश्रेयले श्री सुविधिनाथ बिंबं श्री आगम गछे श्री जयानन्द सूरि पट्टे श्री देवरत्न सूरि गुरुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठापितं च ॥ शुनं वतु || श्री स्तम्नतीर्थ ॥ ७४ ॥ [1760 1 सं० १५४० वर्षे वैशाख सुदि ३ खौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय म० देवसी जा० देल्हणदे सबू दांसा जातृ कीपा प्रमुखकुटुम्बयुतेन पितृश्री पूर्णिमापद श्री सौभाग्यरत्न सूरिणामुपदेशेन पुत्र सहिजाकेन जा० धनी पुत्र गंगदास निमित्तं स्वश्रेयसे च श्री कुन्थुनाथ विं का० प्र० विधिना श्री लीवासी ग्रामे || [1761 ] सं० १५५२ वर्षे मात्र दि १२ बुधे प्रावाद ज्ञातीय प० सधा जा० श्रमकू सु० प० मूलाकेन जा० हांसी सु० हर्षा लषा सहितेन स्वथेयोऽर्थं श्री सम्जवनाथ विं कारितं प्रतिष्ठितं श्री वृत्तपाप ज० श्री उदयसागर सूरिनिः ॥ श्री पसने ॥ [ 1762] संo १६३० वर्षे माघ वद ए शनौ श्री दीव वास्तव्श श्री श्रीमान ज्ञातीय लघुशाखामण्डन श्रे० काबा जा० कामलदे सुत कक्की जाय हर्षादे सुत सचवीर नार्या सहिजलदे सुत हीरजी जाय हीरादे श्री आदिनाथ विं कारितं तपागछे श्री दीरविजयसूरिनिः प्रतिष्ठितं ॥ व ॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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