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________________ ( १६० ) ( ११ ) बिहार वास्तव्य महतीयाण श्री संवेन कारितः तत् प्रतिष्ठा च श्री बृहत् खरतर गन्नाधीश्वर युगप्रधान श्री । (१८) जिनसिंह सूरि प्रजाकर युगप्रधान श्री जिनराज सूरि विजयमान गुरुराजानामादेशन कृत । (१९) पूर्वदेश विहारे युगप्रधान श्री जिनचन्द्र सूरि शिष्य श्री समयराजोपाध्याय शिष्य वा० अजयसुन्दर ग ( २० ) णि विनेय श्री कमललाजोपाध्यायैः शिष्य पं० लब्धकीर्त्ति गणि पं० राजदंस गणि देवविजय ग. (२१) पि थिरकुमार चरणकुमार मेघकुमार जीवराज सांकर जसवन्त महाजवादि शिष्य सन्ततिः सपरिवायैौ । श्रीः । क्षत्रियकुण्ड । * पंचतीर्थी पर | [1698 ] संवत् १८५३ वर्षे माह सुदि ५ दिने । बारडेचा गोत्रे सा० कोदा जा० सोनी पु० साद सीहा सहजा सीहा जा० हीरू श्रेयले श्री कुंथुनाथ विनं कारितं प्र० श्री कोटगले श्री नन्न सूरिजिः ॥ *' लछवाड़' ग्रामसे १ कोस दक्षिण में छोटे पहाड़ पर यह स्थान है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय वाले २४ वें तीर्थकर श्री महावीर स्वामी के पवन, अन्न और दीक्षा ३ कल्याणक इसी स्थान में मानते हैं। वहां के लोग इसको 'जलम थान' कहकर पुकारते हैं। पहाड़ के तलहटी में २ छोटे मन्दिर हैं। उन में श्री वीर प्रभु की श्याम वर्ण के पाषाण की मूर्तियां है। पहाड़ पर मन्दिर में भी म पाकी है और मन्दिर के पास एक प्राचीन कुएड का विह वर्तमान है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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