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[1583]. (१) ॥ संवत् १६७१ वर्षे वैशाप शुदि३ शनी रोहिणी नदाटे श्री आ(२) गरा वास्तव्योपकेश झातीय लोढा गोत्रे गावंशे सं० रुपनदाल (३) नार्या रेषश्री तत्पुत्र संघाधिप सं० श्री कुंरपाल सं० श्री सोनपा-- (४) स तत्सुत सं० संघराज सं० रूपचंद चतुरनुज धनपालादियुतः (५) श्रीमदंचन गई पूज्य श्री ५ श्री धर्ममूर्ति सूरि तत्पटे पूज्य (६) श्री ५ कल्याण सागर सूरीणामुपदेशन विहरमान श्री ईश्वर (3) जिन विप्रतिष्ठापितं सं० श्रीकान्द " । ( मस्तकार ) पातिसाह श्री जहांगीर विजयराज्ये
[1584] (१) ॥ श्रीमत्संवत् १६७१ वैशाष शुदि ३ शनी रोहिणी नक्षत्रे अागरा वा(२) स्तव्योसवाल झाती लोढा गोत्र गावंशे सा० राजपात जार्या राजश्री (३) तत्पुत्र ० शपनदास ना रेषश्री तत्सुत संघाधिप सं0 कुंरपाल संग (४) श्री सोनाक्ष तत्सुन संग संघराज सं० रूपचंद संग चतुर्जुज सं० धन(५) पाल पोग जुधरदास युतैः श्री अंचल गछे पूज्य श्री (६) ५ श्री वर्म सूरि पट्टालंकार श्री कल्याण सागर सूरोणाहुपदेशेन (७) श्री पझानन जिन विचं प्रतिष्ठापितं ॥ श्री ॥ (मस पर ) पानिसाह श्री जहांगीर विजयराज्ये
[1585] (१) ॥ ॥ स्वस्ति श्री संवत् १६६० वर्षे ॥ ज्येष्ठ शुदि १५ तिथौ गुरूवासरे (२) अनुराधा नक्षत्रे सवाल ज्ञातीय अगड़बोली गोत्रे साकूना (३) ॥ संताने सा कान्हड़ । ना० नामनी " पुत्र सा० पहीराज " (४) ना इंद्राणी । नाप सोनो पुत्र सा० निहालचंद । तेन श्री चंदानन शास्वत जि-- (५) न धिंधं कारितं प्रतिष्ठित । श्री खरतरगचे श्री जिनवर्द्धन मूरि संताने
"Aho Shrut Gyanam"