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१४ | जिनराय चिन्यो कुशल विजय पुन्यास तपगन घरी है देख श्रीवछ विचार सम्यक्
गुन सुधार
१५ | नरम की रज टार पूजा जिन करी है १ कुंम लिया चोमुष की प्रतिमा चतुर धरम विमल जिन नेम
१६ । मुनिसोत र निकै करत जवानी प्रेम करत जवांनी पेम नेम जिन संघ सुजानौ विमल ल
१७ | न वाराह धरम जिन व ( ज ) र पानी मुनिसोत जिन कूर्म सपन लप होत सबै सुष प्रति
१८) मा चारों जांन न सुन घरीसु चौमुष २ ॥
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पातिसादि श्री जहांगी ( २ ) ।
१ | | ० || श्री सिद्धेभ्यो नमः ॥ स्वस्ति श्री विष्णुपुत्रो निखिल गुणयुतः पारगो वीतरागः । पायाः क्षीणकर्मा सुरशिखरि समः [कल्प ]
२| तीर्थप्रदाने ॥ श्री श्रेयान् धर्ममूर्तिर्भविकजनमनः पंकजे विजातुः कल्याणां - चंद्रः सुरनर निकरैः सेव्यमा
३। नः कृपालुः ॥ १ ॥ ऋषजप्रमुखाः सर्वे गौतमाचा मुनीश्वराः । पापकर्म विनिर्मुक्ताः क्षेमं कुर्वंतु सर्वदा ॥ २ ॥ कुंर ।
* यह लेख प्रफेसर बनारसीदासजी ने " जैन साहित्य संशोधक " खंड २ अंक १ पृ० २५-३४ में विस्तृत टिप्पणी के साथ प्रकाशित किया है ।
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