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________________ ( 40) [ 1401] ॐ ॥ सं० १५११ वर्षे माघ वदि ए डोहरिया गोत्रे सा० दातु पूरेण ... श्री विमलनाथ विवं कारितं प्रण तपा जट्टारक श्री पूर्णचंद्र सूरि पट्टे श्री हेमहंस सूरिनिः॥ [1402] सं० १५११ फाग शुग ए रवौ प्राग्वाट सा पेषा जार्या राजू सुत वीढाकेन नार्या कमा सुत दरपाल टाहा नरकीता नरमा कगतादि कुटुम्बयुतेन श्री संजवनाथ बिंवं स्वश्रेयसे कारितं प्रतिष्ठितं तपागल नायक नहारक श्री सोमसुंदर सूरि प्रांपज श्री रत्नशेषर सूरिनिः। {1403] सं १५१३ वर्षे मा० व ५ प्राग्वाट व्यतिहुणा ना कर्मा पुत्र हासा नगिन्या व्य दमा पट्या श्राण मनी नाम्न्या श्री वासुपूज्य विवं स्वश्रेयसे का प्र तपा श्री रत्नशेषर सूरिनिः॥ [1404] संवत् १५१७ वर्षे माह सुदि १० बुधे श्री कोरंटगच्ने उपकेश ज्ञाए काला पमार शाखायां सा सोना ना सहजलदे पु० सादाकेन ब्रातृ चउड़ा जादा नेमा सादा पुण् रणवीर वणवीर सहितेन स्वश्रेयसे श्री चंप्रन बिंब कारिण श्री कक्क सूरि पट्टे श्रीपाद .. . । [1405] संवत् १५१७ वर्षे वैशाष सुदि ३ गुरु श्री श्रीमान झातीय बनोला नार्या देमा सुत व्यव० कुरुपालेन चार्या कमलादे सुत व्यव० विद्याधर वीरपाल प्रमुखकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयोर्थ श्री मुनिसुव्रत स्वामी विवं कारितं प्रतिष्टितं तपागच्छनायक जद्वारक श्री सूरसुंदर सूरिभिः । श्रीपत्तन वास्तव्य शुभं भवतु ॥ श्री॥ [14081 ॥ संवत् १५१७ वर्षे माह सुदि १० दिने श्रीमालवंशे । पहवड़ गोत्रे सा मेया नायर्या "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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