SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थोत्तं धना तं सुकयत्था. सुजीवियं तुभ मणुयजम्मो य । जीए उयरेण धरिओ, तिहुयणचूडामणी पढमो ॥१०॥ एवं बहुप्पयारं, उबवूहेउं दिवं गओ खिप्पं । सुरसहिओ विवई समत्त कल्लाणयं पढमं ॥११॥ बीयरस समारम्भे, मरुदेवी संधुया य सक्केणं । गभं वह सुहेणं, कमेण जाओ नरिंदवई ॥१२॥ दसदिसि उज्जोतो, दिसाकुमारीहि जम्मकयकिच्चो | न्हविओ य सुखरेहिं, वरकंचणसेलसिहरंमि ॥१३॥ दिव्वविलेवणआभरणमउडवरदामभूसियसरीरो | सुरवइवंदियचलणो, जणणीए समपिओ सिग्घं || १४ || पंच दिव्याणि तत्थ य, गंधोदगपुष्पबुद्धिवसुहारा । ५३ दुंदुहिचेक्खेवो, जयजयरवबहिरियं भुवणं ||१५|| सुरवर नट्टं सुरसुंदरीण पेक्खेवि विम्हिया देवा | पढमजिणजम्मकालेऽणेगविहं परमभत्तीए ॥१६॥ सक्कत्रयणेण धणओ, मणिकंचणरयणपंचवन्नेहिं । नाभिनरनाहभवणं, आऊरइ हह्तुट्ठो य ॥ १७॥ तुहिं मिहुणगेर्हि, कयजम्ममहूसको सह सुरेहिं | इय बीयं कल्लाणं, पढमजिदिस्स सम्मतं ॥ १८ ॥ कयजम्माईमहिमा, देवा नंदीसरंमि गंतूणं | सासयजिणाण पूयं, न गीयं च कुव्वंति ॥ १॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009676
Book TitleJain Stotra Sanchayasya Part 1 2 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasagarsuri
PublisherRamanlal Jaychand Shah Kapadwanj
Publication Year1960
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy