________________ आ तरंगने पुटभेदतरंग तरीके ग्रंथकारे संज्ञा आपी छ / आ तरंग उपर ग्रंथकारनी स्वोपज्ञ अवचूरि छ / आ पछी 'श्री चतुर्विशतिजिनस्तवाशीर्वाद' नामनो ह्रद शरु थाय छे / एमा नीचे मुजबना त्रण तरंगो छ 1. आद्य-जिनाष्टक 2. मध्यम-जिनाष्टक 3. चरम-जिनाष्टक उपर्युक्त त्रण तरंगोमा पहेलामां श्री ऋषभदेवप्रभुथी श्री चंद्रप्रभसुधीना आठ तीर्थंकरोनी स्तुति छ / ए रीते बीजा तरंगमां श्री सुविधिनाथजीथी श्रीशांतिनाथप्रभुसुधीना आठ तीर्थंकरोनी स्तुति छ। अने त्रीजा तरंगमां श्रीकुंथुनाथजीथी श्री महावीरस्वामीजी सुधीना आठ तीर्थंकरोनी स्तुति छ / अहिं ह्रद पुरो थाय छ / पछी नीचे मुजबना त्रण तरंगो छ / (1) क्रियादिगुप्तकरूप विश्व-कालत्रयभावी जिनस्तवाष्टक (2) श्री जीरापल्लीपाश्वनाथस्तवाष्टक (3) श्री शारदास्तवाष्टक प्रथम अष्टकना आठ श्लोकमां क्रियागुप्त, क्रियाकर्तृक्रियागुप्तक, कर्तृ-कर्म-क्रियाद्वयगुप्तक आदि चमत्कारी अलंकारो गुंथ्या छ / द्वितीय अष्टकमां सुंदर शब्दानुप्रास-श्लेषादि अलंकारो छ। तृतीय अष्टकमां श्री सरस्वतीदेवीनी अर्थगंभीर योगिगम्यगहनस्वरूपवर्णनात्मक स्तुति छ / "Aho Shrut Gyanam"