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प्राचीनलिपिमाला.
है . 'द' का मध्य भाग कहीं कहीं गोलाईदार नहीं किंतु समकोणवाला है. 'ध' को कहीं कहीं उलटा भी लिखा है. 'ज' के मध्य की दाहिनी तरफ की आडी लकीर को कुछ अधिक लंबा कर 'जा' बनाने से'ज' और 'जा' में भ्रम होने की संभावना रहती थी जिसको स्पष्ट करने के लियेही लेखक ने 'ज' के मध्य की लकीर के अंत में बिंदी बनाकर फिर 'श्रा की मात्रा का चिझ लगाया है. जिन अक्षरों का ऊपर का भाग खडी लकीरवाला है उनके साथ 'ई' की मात्रा गिरनार के लेख की इ की मात्रा के समान लगाई है परंतु कुछ नीचे की तरफ से, जिससे'ई की मात्रा का रूप बन जाता है (देखो, 'पिं' और 'ली में 'इ' और 'ई' की मात्रामों का भेद). अनुस्वार का चिक कहीं अक्षर के ऊपर परंतु विशेष कर भागे ही घरा है (देखो, 'पिं' और ' भ्यु')
खालसी के चटान के लेख की लिपि भद्दी है और त्वरा से लिखी हुई प्रतीत होती है जिससे अक्षर सर्वत्र समनहीं मिलते और स्वरों की मात्राओं में कहीं कहीं अंतर पड़ गयाहै (देखो, ता, शा','तुखे, 'गे' और 'ले'). एक स्थान में 'ए' का रूप'ठ' से मिल गया है. 'घ' और 'ल का नीचे का भाग कहीं कहीं गोल नहीं किंतु समकोणवाला बना दिया है (देखो, 'घ', और 'ल' का दूसरा रूप), 'छ' के ऊपरी भाग में V आकृति का सिर बना दिया है जिससे अनुमान होता है कि उस समय किसी किसी लिपि में अक्षरों के सिर भी बनते हों, जिसका कुछ आभास भहिमोलु के लेखों में स्वरों की मात्रारहित व्यंजनों में होता है. ''का नीचे का भाग कलम को उठाये बिना ही (चलती कलम से लिखा है. ऐसे ही 'ज'को भी कहीं कहीं लिखा है जिससे पीच की आडी लकीर के स्थान में ग्रंथि हो गई है. अशोक के लेखों में केवल एक यही लेख ऐसा है कि जिसमें 'श' और 'ष' के रूप मिलते हैं,
जोगड़ के लेख में श्रोउलटा लिखा है और एक स्थान में स'को चलती कलम से लिख दिया है जिससे मध्य में गांठ बन गई है (जोगड के लेख के इस 'स' को गिरनार, सवालक स्तंभ और खालसी के लेखों के 'स' से मिलाकर देखो).
सिद्धापुर के लेख में कहीं कहीं 'अ', 'फ', 'म' और 'र' की आकृतियां कुछ विलक्षण बनी हैं. रधिना के लेख में 'ड के नीचे बिंदी बनाई है.
गिरनार के लेख और अशोक के अन्य लेखों के अक्षरों में कहां कहां अंतर है यह लिपिपत्र दसरे में दिये हए अक्षरों को लिपिपत्र पहिले के अदरों से मिलाने से स्पष्ट हो जायगा. प्रत्येक अक्षर की भिन्नता का विवेचन करने की आवश्यकता नहीं. लिपिपत्र दूसरे की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर
देवानं पिये पियदसि लाम हेवं पाहा सौसति वस अभिसितेन मे इयं धमलिपि लिखापिता हिदतपालते दुसंपटिपादये अंमत अगाया धमकामताया अगाय पलीखाया अगाय सुसूसाया अगेन भयेना भगेन उसाहेना एस खा मम अनुसथिया धमाघेखा धमकामता चा सुवे सुवे वढिता वढौसति वा पुलिसा पि १ मे उकसा चा गेण्या चा मभिमा चा अनुविधीयंती
१. देखो ऊपर पृ. २७ का दिप्पण६
५. ये मूल पंक्तियां देहली सयालक स्तंभलेख से है.
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