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________________ खरोही लिपि की उत्पत्ति में तलशिला नगर से भी मिल चुका है. मिसर से हवामनियों के राजत्यकाल के उसी लिपि के बहुतेरे पंपायरम मिले हैं और एशिमा माइनर से मिले हुए ईरानी नत्रपों (सत्रपों ) के कई सिकों पर उसी लिपि के लेख मिलते हैं, जिनसे पाया जाता है कि इखामनी वंश के ईरानी बादशाहों की राजकीय लिपि और भाषा परमहक ही होनी चाहिये. व्यापार के लिये भी उसका उपयोग तक होना पाया जाता है.. हिंदुस्तान का ईरान के साथ प्राचीन काल से संबंध रहा और हवामनी वंश के बादशाह साइरस ( ई. स. पूर्य ५५८-५.३० ) ने पूर्व में बढ़ कर गांधारदेश विजय किया और ई. स. पूर्व ३१६ के कुछ ही बाद दारा ( प्रथम ) ने मिंधु तक का हिंदुस्तान का प्रदेश अपने अधीन किया जो ई. स. पूर्व ३३१ तक, जय कि यूनान के आदशाह सिकंदर ने गॉगमेला' की लड़ाई में ईरान के यादसाइ दारा (श्रीसरे) को परास्त कर ईरानी राज्य पर नाम मात्र के लिये अपना अधिकार जमाया, किसी न किसी प्रकार बना रहा. अत एव संभव है कि ईरानियों के राजन्यकाल में उनके अधीन के हिंदस्तान के इलाकों में उनकी राजकीय लिपि अरमहक का प्रवेश हुश्रा हो थोर पुसीसे बरोष्ठी लिपि का उद्भव हुमा हो, जैसे कि मुसलमानों के राज्य समय फारसी लिपि का, जो उनकी राजकीय लिपि थी, इस देश में प्रवेश हुआ और उसमें कुछ वर्ण बढ़ाने से उर्व लिपि बनी. अरमहक लिपि में केवल २२ अक्षर होने तथा स्वरों की अपूर्णता और उनमें स्व दीर्थ का भेद न होने एवं स्वरों की मात्राओं का सर्वथा अभाव होने से वह यहां की भाषा के लिये सर्वथा उपयुक्त न थी तो भी राजकीये लिपिहोने के कारण यहां वालों में से किसी ने ई.स. पूर्व की पांचों शताब्दी के आसपास उसके अक्षरों की संख्या बढ़ा कर. कितने एक को प्रावश्यकता के अनुसार यदल नथा स्वरों की मात्राओं की योजना कर उसपर से मामूली पढ़े लिखे लोगों, न्यौपारियों नधा महल्कारों के लिये काम पलाक खरोष्ठी लिपि बना दी हो. संभव है कि इसका निर्माता चीन बालों के लेग्यानुसार ग्बरोष्ट नामक भाचार्य। (ब्राह्मण) हो. जिसके नाम पर से इस लिपि का नाम खरोष्ठी मा. और यह भी संभव है किनक्षशिला जैसे गांधार के किसी प्राचीन विद्यापीठ में इसका प्रादुर्भाव हुआ हो. जिनने लेस्त्र प्रबसक इस लिपिके मिले। इनसे पाया जाता है कि इसमें स्यों नथा उनकी मात्रामों में ट्रस्व दीर्घ का भेद न था. संयुक्ताक्षर केवल थोड़े ही मिलते हैं इतना ही नहीं, किंतु उनमें से कितने एक में संयुक्त व्यंजनों के अलग अलग रूप स्पष्ट नहीं पाये जाते परंतु एक विलक्षण ही रूप मिलता है जिससे कितने एक संयुक्ताक्षरों का पड़ना अभी तक मंशययुक्त ही है. बौद्धों के प्राकृत पुस्तक . जिनमें स्वरों के इस्व दीर्घ का विशेष भेद नहीं रहता था और जिनमें संयु .. इ. रॉ. ह. मो. ई. स. १६१५, पृ. ३५० के सामने का प्लेट. .. मिसर ई. स. पूर्ष ५०० से लगा करई म पूर्व २०० तक के अरमरक लिपि के पंपायरस मिले हैं. ७. : जि. २४, पृ. २८७. । ज. रॉ ए. सोई स. १६६५ पृ. ३५६-१७. १. गोगमेला । प्ररथैला ) दकी के पशिभाई राज्य का एक नगर. जो मोसल और बगदाद के बीच में है 5. खरोष्ठ के लिये देखो ऊपर, पृ. १८ .. खरोष्टी लिपि के शिलालेखादि के लिये देखो ऊपर पृ. ३२.टि. 5-6: श्रार पृ. ३३. टि... + हिडा के स्तूप ( संख्या १३) से मिले हुए खरोष्ठी लेखपाले मिट्टी के पात्र के भीतर खरोष्ठी लिपि में लिखे हुए कितने एक भोजपत्र एक पत्थर पर लिपटे हुए मिले थे परंतु बहुत प्राचीन होने के कारण ये बच सके (परिमाना टिका. पू. ५६.६०, ८४. ६३. १११, १९६). ये सबसे पुराने हस्तलिखित भोजपत्र ये.ई.स.की तीसरी शताब्दी के पास पास की 'धम्मपद' की एक प्रति खोतान से मिली है जिसमें स्वरों की मात्रामों में कुछ सुधार किारा पाया जाता है (ई.पे पृ. १८१६). Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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