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प्राचीनलिपिमाला.
खरोष्ठी लिपि की लेखन शैली फारसी की नाई दाहिनी ओर से बाई ओर होने से निश्चित है कि यह लिपि सेमिटिक वर्ग की है, और इसके ११ अक्षर-'क', 'ज', 'द', 'न', 'ब', 'य", 'र', 'व', 'प, 'म' और 'ह' समान उच्चारण वाले मरमइक अक्षरों से बहुत कुछ मिलते
सेमिटिक लिपि संबंधी आधुनिक शोध से अनुमान होता है कि असीरिया और थापालन में क्यूनिफॉर्म लिपि का प्रचार होने पर भी राजकीय और न्यौपार के कामों में अरमइक लिपि काम में पाती थी. हवामनी (अकॅमीनिअन्) वंश के बादशाहों के समय ईरान के राज्य का प्रताप बहुत बड़ा और दूर दूर के देश १७ उक्त राज्य के अधीन हो गये. उस समय के अरमइक लिपि के अनेक शिलालेख मिसर, अरव और एशिया माइनर में मिले हैं और एक ईरान में तथा एक हिंदुस्तान
है कि उस लेख का लेखक 'पडपंड ) पंजाय की तरफ का होना चाहिये, जिसको खरोष्ठी लिपि का भी ज्ञान होगा जिसे जतलाने के लिये ही उसने ये अंतिम पांच अक्षर उस लिपि में लिखे हो. इसी तरह मरत के प्रसिद्ध स्तूप के द्वार पर कहीं एक एक अक्षर सरोट्रो काखदा हुआ मिला है(क; भ. स्तूः लेटये पंजाब की तरफ से आये हुए शिल्पियों के खोदे हुए होने चाहिये.
१. खरोष्ठी का 'क' तक्षशिला के लेखातथा पंपायरसों के कॉफ' से मिलता हुआ है। देखो पृ. २३ परछपा हा माशा).
५. 'ज' सकारा, दीमा प्रादि के लेखों के 'जान' से मिलता हुआ है. .. 'द' तक्षशिला के लेख, 'पायरसो तथा सहारा आदि के लेखों के 'दाल से मिलता है. .. 'न'तक्षशिला के लेख, शायरसों तथा सकारा आदि के लेखों के नून् ' से मिलता है. ५. 'ब' तक्षशिला के लेम्ब, पंपायरसों तथा सकारा आदि के लेखों के 'बेथ् से मिलता है. ६ 'य तक्षशिला के लेख, पंपायरसों तथा सकारा आदि के लेखों के योध्' से मिलता है. .. 'र' तक्षशिला के लेख तथा पंपायरसो के रेश्' से मिलता है. .. '' तक्षशिला तथा सकारा आदि के लेखों के 'वार' से मिलता है. <. ' को उलटा करने पर यह पायरसों तथा सक्कारा आदि के लेलों के शिन्' से मिलता है. ... 'स' तक्षशिला और सक्कारा के लेखों के साधे से मिलता है. ११. 'इ' तक्षशिला के लेख के 'हे' से मिलता हुआ है. १९. ज. रॉ. प. सोः स. १९१५, पृ. ३४६-४७.
१०. आर्य जाति के हखामन (कमोनि) नामक ईरानी राजवंशी ( जो ई. स. पूर्व की वीं शताब्दी में हुआ हो) के नाम पर से उसके वंशज, ईरान के बादशाह, हवामनी वंशी कहलाते हैं. पहिले ईरान का राज्य मीडिया के अधीन था और हवामन के वंशज साइरस ( कुरु कुरुष-कै खुसरो) ने, जो प्रारंभ में अनशान (ईसन में ) का स्वामी या शासक था, मीडिया के राजा अस्स्यगिस (रविगु) को छलबल से परास्त कर समस्त ईरान और मीडिया पर अपना साम्राज्य ई. स. पूर्ष ५५८ के आस पास जामाया, जिसकी समाप्ति ई.स. पूर्व ३३१ में यूनान के बादशाह सिकंदर ने बादशाह दारा (तीसरे) को परास्त कर की.
___. हखामनी वंश के साम्राज्य के संस्थापक साइरस ने ईरान, मोडिया, लोडिमा ( पशिप्रा माइनर का पूर्यो आधा हिस्सा ), पशिप्रा माइनर का पश्चिमी हिस्सा जिसमें यूनानियों के कई उपनिवेश थे, प्रायोनिया ( मीडिया से परिश्रम का एशिया माइनरका समुद्रतट का प्रदेश), खोया, समरकंद, बुखारा,अफरानिस्तान तथा गांधारमादिदेश अपने अधीन किये. उसके पुत्र कंसिस् (कंबुजोय) ने मिसर देश विजय किया. सिस् के पुत्र दारा (प्रथम) ने ग्रीस के प्रेस तथा मसीइन् श्रादि हिस्सों पर अपना अधिकार जमाया और पूर्व में हिदुस्तान में प्रागे बढ़कर सिंधुतट का प्रदेश अपने अधीन किया.
५ मिसर में सकारा, सेरापित्रम् तथा पॅबिडॉस आदि स्थानों में श्ररमहरु लिपि के लेख मिले हैं जिनमें से सकारा का लेख ई. स. पूर्व ४८२ का है ( पेलिभाम्राफिक सोसाइटीज़ मोरिएंटल सीरीज, प्लेट ६३),
१. अरब में हजाज से उत्सर के टोमा नामक स्थान में कुछ बरमहा लिपि के लेख मिले है, जिनमें से एक.स. पूर्व ५०० के प्रासपास का माना जाता है, टीमा में अरमहक भाषा का व्यवहार करने वाले व्यापारियों की बारादी थी (प.त्रिजि. २१, पृ.६४७).
1. पशिमा माइनर-टर्की के पशिभाई राज्य का पधिमी हिस्सा जो टर्की के यूरोपी राज्य से मिला हुआ है. १८. ईरान के सेवकलेह (तेहरान और तेडीज़ के बीच) नामक स्थान में एक लेख मिला है (.; जि.२४, पृ. २८७),
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