SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९२ प्राचीमलिपिमाला. -१. स्व= २. ग्-३. ४. ५. ८- ६. ७. ज्-८. ६. पू.१०. द.११. ८-१२. ८-१३. -१४. ए-१५. त्-१६. ८-१७. ६-१८. ५-१६. २-२०, ५-२१. २-२२. २३. म्२४. म् - २५. =३०. र-४०. ल=५०. ६.३०. ५-७०. =८०. म्-१.. -१००० - १. १-१००, ३= १००००. भू-१०००.००. ल-१००००००००. ए-१००००००००००. ऐ-१००००००००००००. मो-१००००००००००००००. श्री १००००००००००००००००. इस शैली में स्वरों में दूस्व दीर्घ का भेद नहीं है. व्यंजन के साथ जहां स्वर मिला हुआ होता है यहां व्यंजनसूचक अंक को स्वरसूचक अंक से गुणना' होता है और संयुक्त व्यंजन के साथ जहां स्वर मिला होता है यहां उक्त संयुस व्यंजन के प्रत्येक घटक व्यंजन के साथ वही स्वर माना जाता है जिससे प्रत्येक व्यंजन सूचक अंक को उक्त स्वर के सूचक अंक से गुण कर गुणनफल जोड़ना पड़ता है। इस शैली में कभी कभी एक ही संख्या भिन्न अक्षरों से भी प्रकट होती है. ज्योतिष के प्राचार्यों के लिये भार्यभट की यह शैली बहुत ही संक्षिप्त अर्थात् घोड़े शब्दों में अधिक अंक प्रकट करनेवाली धी परंतु किसी पिछले लेखक ने इसको अपनाया नहीं और न यह शैली प्राचीन शिलालेखों तथा दानपत्रों में मिलती है, जिसका कारण इसके शब्दों का कर्णकद होना हो अथवा आर्यभट के भूभ्रमणवादी होने से भास्तिक हिंदुओं ने उसका बहिष्कार किया हो. आर्यभट (दूसरे ) ने, जो ललल और ब्रह्मगुप्त के पीछे परंतु भास्कराचार्य से पूर्व अर्थात् ई.स. की ११ वीं शताब्दी के भासपास हुमा, अपने प्रार्यसिद्धांत' में १ से 8 तक के अंक और शून्य . के लिये नीचे लिखे अक्षर माने हैं: -- १. 'क'-xx-५४१००-५००. दु'- उ२३४ १००००=२३००००६ 'ए'- ल-१५४ १००००००००=१५००००००००. २. 'धू ( + )- ४ +४ =२४ १०००000+co४९०००००0%D२००००००+८००००००० - प९००००००. 'स्यु' (स+यु)- ४ + २४-१x१००००+३०४ १००००-२००००+ ३०००००-३२००००. _ 'बम'-४ +मx-xxt+२५४१-५+२५-३०; यही अंक (३०) '' से भी सूचित होता है (स्मीयः मा.१), कि-४-१४१००-१००, यही अंक 'ह' से भी प्रकट होता है. . भार्यभट प्रथम ने 'पगरविभवाः एव विनिविदास कमिशहरमप्राक.' इस भाषी पायों से महायुग में होनेवाले सूर्य ( ४३२००००) और चंद्र (५७७५३३३६ ) के भगण तथा भूनम (१५८२२३७५००) की संस्था दशगुषोत्तर संख्या के क्रम से बतलाई है जिसका म्यौरा नीचे अनुसार है'वयगियिशुमन' शिशिधुपलायु सयु ३२०००० ५०० घृ = ४०००००० शि - Vooo ३०० २३०००० ४३२००००. यि - ३००० १५०००००००० ५०००० ८२000000 ७००००० ५७०००००० १५८२२३७४०० ५७७५३३३६ .. कशाकररथपूर्ण पर्वा परमारभाबका । नमो समय समाचार गोवा (भार्यसिद्धांत, मधिकार ) * 'ल' में 'सू' स्पर नहीं है किंतु 'अ't (ExtexT). + गल' में सस्वर है (४).' Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy