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________________ ६० प्राचीमलिपिमाला. को कहीं अक्षर की दाहिनी ओर ऊपर की तरफ़ और कहीं अक्षर के सामने मध्य में धरा है, इस दानपत्र से दिये हुए अक्षरों के अंत में जो अ, आ, व, र, ऊ, वा और उ अक्षर दिये हैं वे इस मानपत्र से नहीं है, उनमें से म, मा, ख और र ये चार महर जान्हवी(गंगावंशी राजा अरिवर्मन् के जाली दानपत्रासे लिये गये हैं. इस पुस्तक में जाली दानपत्रों से कोई लिरिपत्र नहीं बन गया परंतु उक्त अक्षरों के ऐसे रूप अन्यत्र नहीं मिलने और उनका जानना भी आवश्यक होने से ये यहां दिये गये हैं. बाकी के तीन अक्षरों में से 'ज' और 'खा' पूर्वी चालुक्य राजा विष्णुवर्द्धन पांचवें (कलिविष्णुबर्द्धन) के दानपन से और अंतिम 'उ' एहोले के नारायण के मंदिर के शिलालेख से लिया गया है. लिपिपत्र ४६ की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर--- श्रीधामः पुरुषोत्तमस्य महतो नारा. यणस्य प्रभो भोपकरुहारभूम जगतस्मष्टा स्वयंभूलतः भरे माममसनुरनिरिति यः तस्मान्मुनेरचितस्सोमो वंशकर मर्धा शुरुदिन[:] श्रीकपट(एठ)एडामणिः । तस्मादासीत्सधामूळधो बध. नुतस्ततः (जा)तः पुरूरा नाम चक्रवती [ौं] स लिपिषत्र ५०वां. पह लिपिपत्र काकतीयवंशी राजा रुद्रदेव के शक सं. १०८४ (ई.स. १९५२) के अनंकोंरके शिलालेख' और उसी वंश के राजा गणपति के समय के शक सं. ११३५ (ई.स. १९१३) के मोल के शिलालेख से तय्यार किया गया है. अनंकोंड के लेख से मुख्य मुख्य अक्षर ही दिये गये हैं. इस लिपिपत्र में दिये हुए अक्षरों में से अ. भा...उ. सो, औ, ख, ग.च.छ.ज... है, ण, तप, धन, व, भ, म, य, र, ल, श और स वर्तमान कनड़ी या तेलुगु के उक्त अक्षरों से बहुत कुछ मिलते जुलते हैं. पेनोलू के लेग्न के 'श्री' में 'शी' बना कर उसके चौतरफ़ चतुरस्र साधना कर उस के अंत में प्रथि लगाई है. यह सारा चतुरस्रवाला अंश 'र'काही विलक्षण रूप है 'या' और 'स्थ में '8' और '५' का केवल नीचे का प्राधा हिस्सा ही पनाया है. बोलू के लेख के अक्षरों के अंत में ऋके तीन रूप और ऐ अक्षर अलग दिये हैं. उनमें से पहिला ''चालुक्य. बंशी राजा कार्तिधर्मन् (दूसरे) के यकलरी से मिले हुए शक सं. ६७४ (ई.सं.७५७) के दानपत्र' से, इसरा बनपल्ली से मिले हुए अन्नधम के शक सं. १.०० (११३०१) के दानपत्र से, और तीसरा 'पर' तथा 'ऐ'दोनों चालुक्यवंशी राजा पुलकोशिन् [प्रथम] के जाली दानपत्र" से लिये गये हैं. १. ई. एं; जि. पृ. ११९ और के बीच के प्लेटो ले. .. .; जि.१३, पृ. १८६और के ग्रीन कलर मे. . लिपिपत्र में दिये दुप अक्षरों के अंतिम मदर के ऊपर पलती से भागरीका अप गया है जो अशुद्ध उसके स्थान में पाठक'' पढ़ें ४. ई. जि.पू. ७५ के पास के प्लेट से. . ये मूल पंक्तियां राजगड (दूसरे के दाम है. ...। जि-११.१२और के बीच के प्लेटों से... .लि.५, पृ. १४६ र १७ के बीच के प्लेटों से. *. * ज.,.२०५ के पास के प्लेट - B, परि ६५ से. १. जि.प. के पास के पट : A, पाक १०. २१ जि.पू. के पास की घोडे,कमय पहिर Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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