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तेलुगु कनड़ी लिपि.
घसीट है. 'ई की दो बिंदियों के बीच की खड़ी लकीर को नीचे से बाई ओर घुमा कर सिर तक ऊपर बढ़ाने से ही उक्त अक्षर का यह रूप बना है. 'व' (ऋग्वेद के 'व्ह' का स्थानापन्न ) पहिले पहिल इसी दानपत्र में मिलता है जिसके मध्य भाग में एक बड़ी लकीर जोड़ने से दक्षिण की लिपियों का 'र' बना हो ऐसा प्रतीत होता है. इस दानपत्र से दिये हुए अक्षरों के अंत में 'ळ', 'कह और '' अक्षर दिये हैं वे इस दानपत्र से नहीं हैं. 'ळ' और 'ळ्ह' पूर्वी चालुक्य राजा विजयादिव्य दूसरे के एडुरु के दानपत्र' से और '' उसी वंश के राजा अम्म (प्रथम) के मछलीपटन (मसुलिफ्टम्, मद्रास इहाने के कृष्णा जिले में ) के दानपत्र से है.
लिपपत्र ४७ की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर
राष्ट्रकूटकुला माल गगन मृगलाइम: बुधजन मुखक मांशुमाली मनोहर गुण गणालंकारभारः कक्षराजनामधेयः तस्य पुत्रः स्ववंशाने कट संघात परंपराभ्युदय कारणः परमरिषि षि) ब्राह्मणभक्तितात्पर्य कुश
ल: समस्त गुणगणाधिव्बोनी(?टानं) विख्यात लोक निरुपस्थिरभावनि (वि) जितारिमण्डल: यस्यैम (व) मासीत् ॥ जित्वा भूपारिवर्ग नायकुशलतया येन राज्यं लक्षं यः
लिपिपत्र ४८ वां
यह लिपिपन पूर्वी चालुक्यवंशी राजा भीम दूसरे ( ई. स. ६३४ से ६३५ तक ) के पागनदरम् के दानपर से और उसी वंश के अम्म दूसरे ( ई. स. ६४५ से ६७० तक ) के एक दानपत्र से तय्यार किया गया है. इन दोनों दानपत्रों की लिपि स्थिरहस्त और सुंदर है.
लिपिपन्न ४८वें को मूल पंक्तियों' का नागरी अक्षरांतर
स्वस्ति श्रीमत सकलभुवन संस्तूया (य) मान
मानव्यगी। गोवाणा (णां) हारीतिपुत्राणां कौशिकीवर प्र
सादलब्धराराज्यानां माधु (तु) परिपालितानां स्वामि[महासेनपादानुध्यानानां भगवन्नारायणप्रसादम्मामादितवर राहलाच (छ) नेक्ष पक्षण व शौक्क
लिपिपत्र ४८ वां
यह लिपिपत पूर्वी चालुक्यवंशी राजा राजराज के कोरुमेषित से मिले हुए एक सं. ६४४ ( ई. स. १०२२ ) के दानपत्र से तय्यार किया गया है. इसकी लिपि घसीट है और इसके अ, आ, इ, ई, उ, स्व, ग, घ, ज, उ ड, ढ, त, थ, ध, न, य, य, र, ल और स वर्तमान कनड़ी या तेलुगु लिपि के उक्त अक्षरों से मिलते जुलते ही हैं. अक्षरों के सिर बहुधा V ऐसे बनाये हैं और अनुस्वार
१.ऍ. जि. ५, पृ. १२० और १२२ के बीच के प्लेट की क्रमशः पंक्ति १२ और १० से.
९. ऍ. ई. जि. ५. पू. १३२ के पास के प्लेट की पंकि ३२. ४. ई. : जि. १३. पू. २४ और २४६ के बीच के प्लेटों से. *. ये मूल पंक्तियां भीम (दूसरे) के दानपत्र से. हैं.
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ई. ऍ जि. १३, पृ. २१४ और २१५ के बीच के प्लेटों से.
ई. ऍ; जि. १४. पू. ५० और ५३ के बीच के प्लेटों से.
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