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शारदा लिपि. बदमं यदीयममूत्तराङ्गण्ट किताङ्गायष्टिः । नानाविधालसतिसन्निदेशविशेषरम्या गुणशालिनी या । मनोहरत्वं मुसरामबाप सचेतसा सत्कविभारतीय ॥ शृङ्गारसिन्धाx किमियन वेला किंवा मनोभूतरुमवरौ स्यात् वसन्तराजस्य नु राज्यलक्ष्मीस्त्रैलोक्यसौन्दर्य
लिपिपत्र २६ बां. यह लिपिपत्र राजा विदग्ध के सुंगल गांष के दानपत्र से तय्यार किया गया है. इसमें 'पिलक्षण है. कहीं कहीं 'प' और 'म' में स्पष्ट अंतर नहीं है, 'ब' तथा 'ष' में भेद नहीं है, 'ए' की मात्रा तीन प्रकार से लगी है जिनमें से एक आड़ी लकीर है (देखो, 'णे') और 'थे', '', 'स्था' और 'स्थि' में 'ध' का रूप विकृत मिलता है. लिपिपन्न २९ वें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर--
ओं स्वस्ति ॥ श्रीधरप(म्प)कावासकास्परममहारकमहाराजाधिराजपरमेश्वरीमधुगाकरवर्मदेवपादानुध्यात[:] परमव(अ)ह्मण्या मिखिलसच्छासनाभिप्रवृत्तगुरुवृत्तदेवतानुरत्तसमधिगतशास्त्रकुशलतया समाराधितविजनदयो नयानुगतपौरुषप्रयोगावाप्तनिवर्गसिद्धिः सम्यगर्भिताभिकामिकगुणसहिततया फलित व मार्गतरू[:] । सर्वसत्वा (रस्था)श्रयमी(णौ)यो मापनाबायर आदित्यवशो(वंशो)जव[:] परममाहेश्वरी(रः) श्रीभागमतौदेण्या(या) समुत्पाः ]
लिपिपत्र वां यह लिपिपल सोमषर्मा के कुलैत के दानपत्र', चंबा से मिले हुए सोमवर्मा और मासट के दान पत्र राजानक नागपाल के देखीरीकोटी (देनिकोटि)के शिलालेखाभारिणांव के शिलालेख तथा जालंधर के राजा जयचंद्र के समय की शक संवत् ११२६८-लौकिक संवत् २०(ई.स. १२०४) की कांगडा जिले के कीरग्राम के वैजनाथ ( वैद्यनाथ ) के मंदिर की दो प्रशस्तियों से तय्यार किया गया है और इसमें मुख्य मुरूप अक्षर ही दिये गये हैं. कुलैत के दानपत्र में 'च'के पाई तरफ के भंश के नीचे के भाग में गांठ सी लगाई है और '' की खड़ी लकीर के मध्य में ग्रंथि बनाकर उसके और 'फ' के बीच अंतर को स्पष्ट किया है. वैजनाथ की प्रशस्तियों के 'ई'को, खत मदर के प्राचीन रूप में खड़ी
कभी कभी लगने लगी और बंगला, मैथिक तथा उडिया लिपियों में वाहिनी तरफ नीचे गांठवाली षक रेशा के रूप में उसका अब तक प्रयोग होता है (देखो, लिपिपत्र ७८ और 5 में उक्त लिपियों की वर्णमालाओं में के, के, को और कौ).
१. कोएँ, चं. सेप्लेट १७ से.
१. इन तीन लकीरों में से पहिली की प्राकृति देती है और दूसरी व तीसरीसदी लकीरे हैं जिनमे स एक अनावश्यक है.
. गुद्ध पाठ 'मोषणादयः' होना चाहिये. फो। . छ. स्टे प्लेर २४ से. ५. फो। ..से प्लेट २५ से.
फो .. स्ले प्लेटले. . . जि. २०१के पास के प्लेट से. . इन प्रशस्तियों के समय के लिये देखो ऊपर प.. दिपए .. .। प्लेट माचीन मरों की पति प्रथम से.
Aho ! Shrutgyanam