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: गाथा सहस्री |
न व किंचि अणुनायं, पडिसिद्धं वादि जिणवरिंदेहिं । तित्थगराणं आणा, कज्जे सवेण होअवं ॥ ५१० ।।
[ श्रीपञ्चवस्तुकसूत्रे २५१ पत्रे ॥ ] जो हुन उ असमत्थो १, बालो २ वुड्डो व ३ रोगिओ वावि । सो आवस्तयजुत्तो, अच्छिज्जा निज्जरापेही ॥ ५११ ॥
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सम्मत्तंमि उ लद्धे, पलिअपुहुत्तेण सावगो हुजा [होइ ] । चरणोवसमखयाणं, सागरसंखंतरा होई ॥। ५१२ ॥
[पंचवस्तुकसूत्रे २५८-२७५ पत्रे प्रवचनसारोद्धारेऽपि ॥ ] जे दंसणवावना, लिंगम्गहणं करिंति सामण्णे । तेर्सि पि अ उववाओ, उक्कोसो जाव गेविज्जे ॥५१३ ॥ [पञ्चवस्तुकसूत्रे २८० पत्रे ॥ ] afga भुंजइ १ छक्कायपमद्दणो २ घरं कुणइ ३ । पश्चक्खं च जलाए, जो पियइ ४ कहण्णु सो साहू || ५१४ ॥
[ पञ्चवस्तुकसूत्रे १२०२ गाथा २८६ पत्रे ॥ ] सुखइ य वयररिसिणा, कारवर्णपि हु अणुट्टिअमिमरस । वायगगंथेसु तहा, एअगया देसणा चैव ॥ ५१५ ॥
[ वस्तुकसूत्रे गाथा १२२७२८७ पत्रे ।। ] अगुणविप्पमुको, जो देइ गणं पवत्तिणिपयं वा । जोऽवि पढिच्छर नवरं, सो पावइ आणमाईणि ॥ ५१६ ॥
वूढो गणहरसदो, गोअमपमुद्देहिं पुरिससीहेहिं । जो तं ठवइ अपत्ते, जाणंतो सो महापावो ॥ ५१७ ॥ कालोचिअगुणरहिओ, जो अ ठवावेइ तह निविद्वेपि । जो अणुपालइ सम्मं, विसुद्धभावो ससती ॥ ५९८ ॥ एव पवत्तिणिसदो, जो बूढो अज्जचंदणाईहिं । जो तं ठबइ अपत्ते, जाणतो सो महापावो ॥ ५१९ ॥
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[ पञ्चवस्तुकसूत्रे गा० १३१८ तः गा० १३२१२९० पत्रे ॥ ] आवरिस १ णिसीहि २ मिच्छा ३, पुच्छण ४ मुबसंपयंमि गिहिएस ५ | अण्णा सामायारी, न होइ से सेसिआ पंच ॥ ५२० || आवस्सिअं १ निसीहिअ २ मोतुं उवसंपयं च गिहिए ३ | सेसा सामायारी, न होइ जिणकप्पिए सन्त ।। ५२१ ॥
[पत्र० गा० १४२३-१४२४२९४ पत्रे ॥ ] आयारवत्थु तइअं, जहण्णयं होइ नवमपुवस्स । तहियं कालण्णाणं, दस उक्कोसेण भिण्णाई ॥ ५२२ ॥ पैढमिलयसंघयणा, घिईऍ पुण वज्जकुडुसामाणा । परिवज्र्जति इमं खलु कप्पं सेसाओ ण उ कयाइ ।। ५२३ ॥
[पञ्चवस्तुकसूत्रे गाथा १४२९ - १४३० २९४ पत्रे ॥ ]
१- नैव किञ्चिदनुज्ञातम् एकान्तेन प्रतिषिद्धं वापि जिनवरेन्द्रैर्भगवद्भिः किन्तु तीर्थङ्कराणामा ज्ञेयम् यदुत कार्ये सत्येन भवितव्यं न मातृस्थानतो यत्किंचिदवलम्बनीयमिति गाथार्थः ॥ ५१० ॥ २- संहननद्वारमाश्रित्याह - 'पढ०' प्रथमेल्लकसंहननाः= ऋषभनाराचसंहनना इत्यर्थः । धृत्या पुनर्वज्रकुड्यसमानाः प्रधानवृत्तय इति भावः, प्रतिपद्यन्ते एनं खलु कल्पमधिकृतं जिनकल्पं, शेषा न तु कदाचित्तदन्य संहनिन इति गाथार्थः ॥ ५२३ ॥ पचवस्तुकवृत्ती |
"Aho Shrut Gyanam"