SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृतटीका - भाषाटीकासमेतः । ( ७९ ) प्रेरण प्राप्त है परन्तु आगे निर्मुक्त हो जायगा । यह पापग्रहका विवरण दीप्तत्व होनेके कारणसे कहा है ॥ १०८ ॥ १०९ ॥ इति दीप्तपृच्छाद्वारम् ॥ २४ ॥ चतुर्थे दशमे वापि यदि सौम्यग्रहो भवेत् ॥ तदा न गमनं क्रूरैस्तत्रैव गमनं भवेत् ॥ ११० ॥ f सं० टी० - अथ पथिकगमनागमनद्वारमाह- गमागमनपृच्छायां यदि लग्नाच्चतुर्थे वा दशमे स्थाने सौम्यग्रहे सति गमनं भवति । यदि तत्रैव क्ररग्रहः स्यात्तदा गमनं न भविष्यतीति वाच्यम् ॥ ११० ॥ अर्थ - अब पचीसवें द्वारमें पथिकका गमनागमन लिखते हैं- यदि कोई पूछे कि, मुझको कहीं जानकी इच्छा है सो वहाँ जाना होगा या नहीं ? ऐसे प्रश्नमें प्रश्न लग्नसे चौथे या दशवें स्थानमें यदि शुभग्रह हो तो जाना नहीं हो और यदि वही चौथे, दशवें स्थान में पापग्रह हों तो अवश्य वहाँ जाना हो ॥ ११० ॥ द्वितीये केंद्रतोऽभ्येति यदा खेटस्तदागमः || आयियासुं ग्रहं दृष्ट्वा ब्रूयादिदमशंकितः ॥ १११ ॥ १ यहां मरणशब्दसे आठ प्रकारका मरण है: यथा- "व्यथा दुःखं भयं लज्जा रोग: : शोकस्तथैव च । बन्धनं चावमानं च मृत्युश्वाष्टविधः स्मृतः ॥" येही आठ हैं । मुच्यते परम्" इसकी व्यर्थता होगी ॥ अन्यथा "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy