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________________ (७४) भुवनदीपकः । वाच्यौ,यतोऽग्रेऽपि विवादशत्रुहनने इत्यस्य विवादशब्देनोपात्त. त्वात् ॥ १०१॥ इति विवादविचारद्वारं द्वाविंशम् ॥ २२ ॥ ___ अर्थ-लग्न और सप्तम इन दोनों स्थानोंको छोडकर अन्य स्थान. स्थित दो पापग्रहोंकी परस्पर पूर्णदृष्टि हो तो दोनों वादीप्रतिवादियों में छुरिका अर्थात् तलवार आदिके प्रहारोंसे युद्ध हो ।। १०१ ॥ इति विवादविचारद्वारम् ॥ २२ ॥ व्रतदानपट्टारोपणप्रतिमास्थापनविधिःस्मृतोगुरुणा दशमस्थानं कार्य रविदृष्टिप्रभृतिभिर्बलवत् १०२ सं० टी०-अथ संकीर्णपदनिर्णयदारमाह-व्रतदानं दीक्षा पट्टारोपणं पट्टाभिषेकः, प्रतिमास्थापनं प्रतिष्ठा, एतेषां कार्याणां विधिषु इतिकर्तव्येषु प्रारब्धेषु गुरुणा कार्यकर्ता उपदेशिकेन वा दशमं कर्माख्यं स्थानं रविदृष्टिप्रभृतिभिर्ग्रहविलोकनैबलवत् बलाधिकं कर्तव्यं दशमे स्थाने बलवति कार्य कर्तव्यं नान्यथोत भावः ॥ १०२ ॥ अर्थ-दीक्षाग्रहण, राज्याभिषेक और प्रतिमास्थापन ये सब कार्य यदि लग्नसे दशमस्थान व्यादिग्रहोंकी दृष्टयादिसे बलवान् हो तो करने चाहिये, ऐसा गुरुजनोंने कहा है ॥ १०२ ॥ "Aho Shrut Gyanam
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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