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________________ (६६) भुवनदीपकः। लग्नाद्यतमे स्थाने शुक्रो भवति तावतो मासान् गर्भस्थितः स्थास्यति चेति वाच्यम् । अथ यदा दशमे एकादशे स्थाने शुक्रो भवति तदा पञ्चमस्थानतो गणनीयमिति भावः ।। ९० ॥ इति गर्भमाससंख्याज्ञानद्वारं सप्तदशम् ॥ १७ ॥ अर्थ-अब सत्रहवें द्वारमें कितने महीने यह गर्भ और रहेगा, इसको जाननेके लिये लिखते हैं- प्रश्नलग्नसे शुक्र जितने संख्यक स्थानमें स्थित हो उतने महीनेपर्यन्त गर्भकी स्थिति कहनी और यदि शुक्र लग्नसे दशवें, ग्यारहवें और बारहवें स्थानमें हो तो पञ्चमभावसे लेकर शुक्रके स्भानतक गिनकर माससंख्या जाटनी ॥ ९० ॥ ___ इति गर्भमाससंख्याज्ञानद्वारम् ॥ १७ ॥ स्थाने चतुर्थे सौम्यत्वमापने ललना धृता ॥ सप्तमे सौम्यतां प्राप्ते प्रष्टुः कांता विवाहिता॥९१॥ सं०टी०-अथ स्त्रीप्राप्तिविचारद्वारमाह-लग्नाचतुर्थे सौम्यअहे सति दृष्टे वा इयं स्त्री धृता वाच्या, यादे लग्नात्सप्तमे सौम्यतां प्राप्ते विवाहितेयं भार्योत वाच्यम् ॥ ९१ ॥ १. अर्थ-अब अठारहवें द्वारमें स्त्रीलाभसम्बन्धी विचार लिखते हैंयदि प्रश्नलग्नसे चौथे स्थानमें शुभग्रह प्राप्त हो या चौथेपर शुभग्रहकी दृष्ट्यादि हो तो धरी हुई स्त्री मिलेगी और यदि सप्तम स्थानमें शुभग्रह "Aho Shrut Gyanam'
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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