SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४ ) भुवनदीपकः । अर्थ - १० में कीदृश ग्रह विनष्ट होता है, उसका विचार, ११ में चार प्रकारके राजयोगोंका कथन, १२ में लाभालाभका विचार, १३ में लग्नेशकी स्थिति से फल कथन ॥ ४ ॥ गर्भस्य क्षेममेतस्य गुर्विण्याः प्रसवो यदा ॥ अपत्ययुग्मप्रसवो ये मासा गर्भसंभवाः ॥ ५ ॥ सं० टी० - एतस्य गर्भस्य क्षेमं कल्याणमस्ति वा नवा १४, गुर्विण्याः प्रसवः प्रसूतिकालसमय: १५, युगलबालजन्मज्ञानम् १६, ये मासा गर्भसंभवाः संख्याः १७ ॥ ५ ॥ अर्थ - १४ में प्रश्नद्वारा गर्भका कल्याण रहेगा या गर्भपात होगा, इसका विचार, १५ में गुर्विणीके प्रसवसमयका ज्ञान, १६ में यमज अर्थात् दो संतानोंके एकसाथ जन्म होनेका विचार, १७ में जिस मासका गर्भ है, उस मासका निर्णय करेंगे ॥ ५ ॥ धृता विवाहिता भार्या विषकन्या यथा भवेत् ॥ भावान्तगो ग्रहो यादृग्विवाहादिविचारणाः ||६|| सं० टी० - धृता उद्धृता विवाहिता भार्या १८, यथा येन प्रकारेण विषकन्या भवेत् १९, भावान्तगस्य ग्रहस्य स्वरूपम् २०, विवाहादिविचारणाः २१ ॥ ६ ॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy