SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ १२४) भुवनदीपकः । धनैर्मन्दैदृष्टः सेवेत्थशालकः ॥ युग्मं पश्चात्पुरः शीघ्रमेकराशी तथा दृशि । प्राग्वज्जाते भवेद्योगो मध्यगो मुसरिःफकः ॥ मिथो दृशं विना खेटावयांतः शीघ्रगो ग्रहः " ॥ १६९ ॥ १० ॥ इति गर्भादिप्रश्नद्वारं षत्रिंशम् ॥३६॥ पर्य-इसी गतिसे (पूर्वश्लोकमें कहे अनुसार) छः लग्न कल्पना करनी, फिर इससे भी अधिक प्रश्न विचारमें पूर्व कहे हुये छः स्थानोंसे अन्य जो छः हैं उनमें क्रमसे बलाबल विचारकर कल्पना करनी, इसी प्रकार एक लापरसे बारह प्रकारोंके प्रश्नलग्न कल्पित होते हैं, इसी प्रकार धनस्थानसे बारह, फिर तृतीय स्थानसे बारह, एवम् एकसौ चौवालिस लग्न कल्पित हो सकते हैं ॥ १६९ ॥ श्रीपद्मप्रभुसूरि नामक आचार्यद्वारा लोकोंके उपकारके लिये यह ग्रहभाव प्रकाशनामक ( भुवनदीपक ) शास्त्र प्रकाशित किया गया है ॥ १७ ॥ इत मिथिलादेशांतर्गतकनिगामग्रामनिवासिश्रीबबुयेशर्मात्मज श्रीबच्चूशर्मकृतभाषाटीका समाप्ता । समाप्तोऽ५ ग्रन्थः। पुस्तक मिलनेका ठिकानागङ्गाविष्णु श्रीकृष्णदास, खेमराज श्रीकृष्णदास, "लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर" स्टीम्-प्रेस, “श्रीवेङ्कटेश्वर" स्टीम्-प्रेस. कल्याण-बम्बई. | खेतवाडी-बम्बई. "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy