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________________ संस्कृतटीका-भाषाटीकासमेतः। (११५) यदि पञ्चमम् । तदा पुत्रस्य पृच्छायां न पुत्रोऽस्तीति कथ्यते ॥ ४॥" ॥ १६३ ॥ ___ अर्थ-अब छत्तीसवें द्वारमें गर्भप्रश्नादि लिखते हैं-यदि गर्भिणी स्त्री पिताके गृहमें हो तो पितासे धारित नाम और स्वामीके गृहमें हो तो सशुरालका नाम ग्रहणकरके जो अक्षर संख्या हो उसमें स्वामीकी भी नामाक्षरसंख्या मिलावे किर शुक्लपक्षकी प्रतिपदासे लेकर पूछनेके दिनमें जो तिथि हो वहां तक गिनकर जोड दे फिर सात ध्रुवाभी जोड दे योगाङ्कमें तीनका भाग दे, एक शेष बचे तो पुत्र, दो बचें तो कन्या, शून्य शेष बचे तो गर्भ शून्य कहना अर्थात् गर्भ गिरजायगा अथवा उत्पन्न होने परभी उस गर्भकी सन्ततिका नाश होगा ऐसा कहना चाहिये ॥ १६३ ॥ एकस्मिन्प्रकृतिः शुभेनसहितेसौख्यातिरेक-क्षपा. नाथेन श्रुतिरद्भुता प्रसरति क्रूरेण पीडोद्भवः॥ शुक्र सप्तमगे स्त्रियाः पतिगतं पुत्रादिकं वा पदं पृच्छंत्याःसुरतस्थितावनुभवोवाच्योऽष्टमस्थेपिच ___ सं० टी०-अथ पतिगतं पुत्रादिकम् अर्थात् पुत्रादिकविषयं, वा पदं स्थानादिकं पृच्छंत्याः स्त्रियाः प्रश्नकाले एकस्मिन् शुक्र सप्तमगे तदा प्रकृतिः स्वभावो न विशेषः कश्चिदपि वाच्यः, शुभेन गुरुणा बुधेन वा सहिते शके "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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