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(१०४) भुवनदीपकः । ।३।२० में एक नवांशखण्डको भोगते हैं, चन्द्रमा पन्दरह१५ घडीमें, मंगल ५ दिनमें, बृहस्पति एक मास तेरह दिन, बीस घडीमें १।१३।२०, शनि तीन मास दश दिन ३ । १० में,राहु दो मासमें एक नवांशखण्डको भोगता है, इसी अनुसारसे फलादेशमें विचार करना चाहिये ।। १४६ ॥
इत्यतीतदिनलामादिद्वारम् ॥ ३१ ॥
लग्नपतिर्यत्रांशे पृच्छालग्ने तमंशमालोक्य ॥ लग्नाधिपांशलग्नांशनाथयोईग्युतिसुहृत्त्वम् १४७॥ ___ सं० टी०-अथ लग्नेशांशलाभद्वारमाह-पृच्छालग्ने लग्नपतियस्मिन्नवांशे भवति तमंशं सम्यगवलोक्य :ततो लग्नाधिपतिलग्ननवांशकनाथयोदृष्टियुक्तत्वं सुहत्त्वं चेति विचारणीयमिति ॥ १४७ ॥
अर्थ-अब बत्तीसवें द्वारमें लग्नेशपरसे लग्नादि भावकी वृद्धि आदिके विचार लिखतेहैं-प्रश्नकालिक लग्नके स्वामी जिस नवांशकमें हो उस नवांशको अच्छी रीतिसे देखकर लग्नस्वामी जिस नवांशमें हो उस नवांशके स्वामी और लग्न जिस नवांशमें हो उसके स्वामी इन दोनोंकी परस्पर दृष्टि योग और मित्रताको विचारना चाहिये ॥१४७॥
"Aho Shrut Gyanam"