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अध्याय - ४
सानत्कुमारमाहेन्द्रयोः सप्त ॥३०॥ सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग के देवों की आयु सात सागर से कुछ अधिक है।
In Sānatkumāra and Māhendra seven.
त्रिसप्तनवैकादशत्रयोदशपश्चदशभिरधिकानि तु ॥३१॥ पूर्व सूत्र में कहे हुए युगलों की आयु (सात सागर) से क्रमपूर्वक, तीन, सात, नव, ग्यारह, तेरह और पन्द्रह सागर अधिक आयु (उसके बाद के स्वर्गों में) है।
But more by three, seven, nine, eleven, thirteen and fifteen.
आरणाच्युतादूर्ध्वमेकैकेन नवसु ग्रैवेयकेषु विजयादिषु
सर्वार्थसिद्धौ च ॥३२॥ आरण और अच्युत स्वर्ग से ऊपर के नव ग्रैवेयकों में, नव अनुदिशों में, विजय इत्यादि विमानों में और सर्वार्थसिद्धि विमानों में देवों की आयु एक एक सागर अधिक है।
Above Arana and Acyuta, in Navagraiveyakas, Vijaya, etc. and Sarvārthasiddhi, it is more and more by one sāgara.
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