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अध्याय - २
लब्धिप्रत्ययं च ॥४७॥
वैक्रियिक शरीर [ लब्धिप्रत्ययं च] लब्धि-नैमित्तिक भी होता
Attainment is also the cause (of its origin).
तैजसमपि ॥४८॥
[ तैजसम् ] तैजस शरीर [ अपि] भी लब्धि-नैमित्तिक है।
The luminous body also (is caused by attainment).
शुभं विशुद्धमव्याघाति चाहारकं प्रमत्तसंयतस्यैव ॥४९॥
[आहारकं] आहारक शरीर [शुभम् ] शुभ है अर्थात् वह शुभ कार्य करता है [ विशुद्धम् ] विशुद्ध है अर्थात वह विशुद्धकर्म (मंद कषाय से बंधने वाले कर्म) का कार्य है। [च अव्याघाति ] और व्याघात-बाधारहित है तथा [ प्रमत्तसंयतस्यैव ] प्रमत्तसंयत (छठवें गुणस्थानवर्ती) मुनि के ही वह शरीर होता है।
The projectable body, which is auspicious and pure and without impediment, originates in the saint of the sixth stage only.
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