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अध्याय -२
The movement of a (liberated) soul is without a bend.
विग्रहवती च संसारिणः प्राक्चतुर्थ्यः ॥२८॥ [ संसारिणः ] संसारी जीव की गति [ चतुर्थ्यः प्राक् ] चार समय से पहिले [विग्रहवती च] वक्रता-मोड़ सहित तथा रहित होती है।
The movement of the transmigrating souls is with bend also prior to the fourth instant.
एकसमयाऽविग्रहा ॥२९॥
[अविग्रहा] मोड़ रहित गति [ एकसमया] एक समय मात्र ही होती है अर्थात् उसमें एक समय ही लगता है।
Movement without a bend (takes) one instant.
एकं द्वौ त्रीन्वाऽनाहारकः ॥३०॥
विग्रहगति में [ एकं द्वौ वा तीन् ] एक दो अथवा तीन समय तक [अनाहारकः ] जीव अनाहारक रहता है।
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