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अध्याय -८
[ततः च] तीव्र, मध्यम या मन्द फल देने के बाद [निर्जरा] उन कर्मों की निर्जरा हो जाती है अर्थात् उदय में आने के बाद कर्म आत्मा से पृथक् हो जाते हैं।
After fruition (enjoyment), the karmas fall off or disappear.
नामप्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषात्सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाहस्थिताः सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्तप्रदेशाः ॥२४॥
[नामप्रत्ययाः] ज्ञानावरणादि कर्म प्रकृतियों का कारण, [ सर्वतः ] सर्व तरफ से अर्थात् समस्त भावों में [ योगविशेषात् ] योग विशेष से [ सूक्ष्मैकक्षेत्रवगाहस्थिताः] सूक्ष्म, एकक्षेत्रावगाहरूप स्थित [ सर्वात्मप्रदेशेषु ] और सर्व आत्मप्रदेशों में [अनन्तानन्तप्रदेशाः] जो कर्म पुद्गल के अनन्तानन्त प्रदेश हैं सो प्रदेशबन्ध है।
The karmic molecules of infinite times infinite space-points always pervade in a subtle form the entire space-points of every soul in every birth. And these are absorbed by the soul because of its activity.
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