SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और आत्म-समीक्षा करना सीखें, यह समझाया है। इसके लिए जैन आगम दसवे आलियं की चूलिका में जो कहां है, वह हमें बताया जो पुव्वस्तात ररस्तकाले, संपिक्खई अप्पगमप्पएवं। कीं मे कडं किं च मे किच्चसे सं किं सक्कणिज्जं न समायरामि ॥ मध्यरात्रि के नीरव वातावरण में व्यक्ति खुले दिमाग से सोचे मैंने क्या किया है ? क्या करना मेरे लिए शेष है ? और कौन सा वह कार्य है जिसे में कर सकता हूँ फिर भी नहीं कर रहा हूँ। ऐसा चिन्तन करना आत्म-निरीक्षण है, आत्म-दर्शन है, आत्म-संपेक्षा है। सामायिक कर रहे हो और सही तरीके से नहीं कर रहे हो तो उसे समझकर करें। इसके लिए अध्ययन करें, गुरुदेव कि पुस्तकें तो पढ़े ही साथ-साथ घर बैठे बी.ए., एम. ए. के अभ्यास द्वारा न बढ़ाने का प्रयत्न करें। तेरापंथ धर्म संघ में मेरी गति प्रगति का मुख्य कारण ही गुरू का आशीर्वाद रहा। जैसे मेरा जीवन बदला वैसे ही आप सब गति-प्रगति कर अपने जीवन को बदल सकते हैं, यही आशा और विश्वास है। सभी "अर्हम् बनें " इसी मंगल कामना के साथ यह पुस्तक प्रस्तुत कर रही हूँ। बनें अर्हम् - हे प्रभो यह पं अहमेकः समायातः, गामी चैकः, पुन ध्रुवम् । मोहस्तदा किमर्थं स्यात् स्वजनेषु च वस्तुषु ॥ ૧૪ आत्मनिरीक्षण और आत्मपरीक्षण करें.... अपने आप से पूछें, क्या मैं जागृत हूँ ? "क्षणभर भी प्रमाद मत करो" इसे याद करते हो ? सामायिक करते हो? अगर करते हो तो क्या सामायिक का सही अर्थ समझकर करते हो ? क्या इस पुस्तक को पढ़कर आपको कुछ नया ज्ञान मिला है ? क्या आप ज्ञान बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील हैं ? पुस्तक में आपको क्या अच्छा लगा ? क्या कमी लगी? बताना चाहोगे ? घर बैठे पत्र द्वारा बी. ए., एम. ए. कैसे और कहां करना है यह जानना चाहोगे? मुझे लिखें, जिज्ञासा प्रस्तुत करें एवं फोन द्वारा संपर्क करें। बनें अर्हम् योग, प्रेक्षाध्यान और सामाजिक सीखनी है? कोई भी विषय पर कार्यक्रम आयोजित करना है? सीखना है? सही जीवन जीना सीखना है? इस पुस्तक को अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों को भेंट करना चाहोगे? अलका सांखला मो. 9427491613 e-mail: [email protected] यह निश्चित है कि मैं अकेला आया हूँ और अकेला जाने वाला हूँ। फिर स्वजनों और वस्तुओं पर मोह किसलिए हो? 134
SR No.009660
Book TitleBane Arham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlka Sankhla
PublisherDipchand Sankhla
Publication Year2010
Total Pages49
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy