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________________ # आधुनिक सामायिक ॥ सामायिक साधना : (देखें, अभिनव सामायिक) नमस्कार महामंत्र- ॐ ही के साथ) णमो अरहंताणं अरहन्तों को नमस्कार। णमो सिद्धाणं सिद्धों को नमस्कार। णमो आयरियाणं आचार्यों को नमस्कार। णमो उवज्झायाणं उपाध्यायों को नमस्कार। णमो लोए सव्वसाहूणं लोक के सब सन्तों को नमस्कार। अभिनव सामायिक ऐसे करेंवन्दे अहम् -तीन बार वन्दे गुरुवरम् -तीन बार वन्दे सच्चम् -तीन बार सामायिक प्रतिज्ञा - करेमि भन्ते... नमन हमारा अरहंतों को, सिद्धों को आचार्यों को। आगम पुरुष उपाध्यायों को और लोक के सब संतों को। एसो पंच णमुक्कारों, सच पावपणासणो। मंगलाएं च सव्वेसिं. पढमं हवड़ मंगलं ॥ नमस्कार पंचक यह पावन, करता सब पापों का नाश । सभी मंगलों में प्रधान है, प्रकटे भीतर दिव्य प्रकाश ।। सामायिक पाठ (देखें, अभिनव सामायिक) ॐकार बिन्दु संयुक्तं. नित्यं ध्यायन्ति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैव, ॐकाराय नमो नमः ।। - 'ॐ' समस्त मंत्रों का आदि, प्रेरक और आन्तरिक शक्तियों को जाग्रत करने वाला शब्द ब्रह्म है। - 'ॐ' में पांच परमेष्ठी के पांच रंग के अनुसार ध्यान करते हुए ॐ के नाद से सम्पूर्ण मन-मस्तिष्क को भर दीजिये। ॐकार का उच्चारण करने से पहले दीर्घ श्वाँस ले, मूंह को खोलके 'ओ' से उच्चारण शुरु करें, इस नाभीचक्र पर प्रकम्पन आएंगे। 'उ' का उच्चारण करते समय कंठ पर प्रकम्पन आएंगे और 'म' का उच्चारण करते समय मस्तिष्क पर प्रकम्पन आएंगे। ॐकार के उच्चारण को प्राथमिक स्वाध्याय में १० सेकन्ड लगते है, उसमें ओ को २ सेकन्ड, उको ३ सेकन्ड औरम को ५ सेकन्ड लगाने है। ॐकार का पाँच बार उच्चारण करें। उसके बाद महाप्राण ध्वनि का उच्चारण करें। चत्तारि मंगलं मंगल चार हैं:अरहंता मंगलं, अरिहंत मंगल हैं, सिद्धा मंगलं, सिद्ध मंगल हैं, साहू मंगलं, साधु मंगल हैं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगल। केवलि–भाषित धर्म मंगल है। चत्तारि लोगुत्तमा चार लोक में उत्तम हैं :अरहंता लोगुत्तमा अरिहंत लोक में उत्तम हैं, सिद्धा लोगुत्तमा सिद्ध लोक में उत्तम हैं, साहू लोगुत्तमा साधु लोक में उत्तम हैं, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो। केवलि–भाषित धर्म लोक में उत्तम है। चत्तारिसरणं पवजामि मैं चारों की शरण में जाता हूँ :अरहंते सरणं पवजामि, मैं अरिहंतों की शरण में जाता हूँ, सिद्धे सरणं पवजामि, मैं सिद्धों की शरण में जाता हूँ, साहू सरणं पवजामि, मैं साधुओं की शरण में जाता हूँ, केवलिपण्णत्तं धम्म सरणं पवजामि मैं केवलि–भाषित धर्म की शरण में जाता हूँ। बने अहम् सेता से कीर्ति बढ़ती है। सेवा से बाल बढ़ता है। सेवा से शापित बढ़ती है और सेवा से सुख बनता है। बन अहम सेवया वर्धते कीर्तिः, सेवया वर्धते बलम् । रोतया वर्धते शान्तिः , सेतया वर्धते सुखम् ।।
SR No.009660
Book TitleBane Arham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlka Sankhla
PublisherDipchand Sankhla
Publication Year2010
Total Pages49
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size57 MB
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