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________________ # अभिनव सामायिक ॥ सामायिक साधना उपकरण -मुख वस्त्रिका, माला, आसन, पूंजनी और चद्दर। स्थान - एकान्त या उपासना कक्ष। सावधानी -खाली पेट अथवा अल्पाहार। साधना -जप, ध्यान, स्वाध्याय, कायोत्सर्ग, योगासन। सामायिक पाठ करेमि भंते! सामाइयं हे भगवान! मैं सामायिक करता हूँ। सावज्जं जोगं सावध योग (पापाकारी प्रवृत्ति) का पच्चक्खामि प्रत्याख्यान (त्याग) करता हूँ। जाव नियम सामायिक का जितना काल है। (मुहुत्तं एग) एक मुहूर्त तक (४८मिनट) पज्जुवासामि मैं उपासना करता हूँ। दुविह दो करण (करना, कराना) तिविहेणं तीन योग से (मन, वचन, काया) न करेमि न करुंगा न करावेमि न कराऊँगा मणसा मन से वयसा वचन से कायसा काया से तस्स उन पूर्वकृत पापों से भंते! हे भगवान! पडिक्कमामि निवृत्त होता हूँ निंदामि निंदा करता हूँ (आत्म साक्षी से) गरिहामि गुरु साक्षी से आलोचना करता हूँ अप्पाणं वोसिरामि आत्मा को पाप से दूर करता हूँ। नोट : सामायिक पाठ के बाद लोगस्स का पाठ अवश्य पढ़े। संघीयसाधना श्रेष्ठा, संघेनोपकृता वयम् ।। न हम्मानजय सेताऽचि, कर्तव्या महता मुता।। अभिनव सामायिक प्रयोग वेशभूषा सादगी प्रधान।महिलाओं में भी सफेद परिधान हो। आसन-सबका एक रहे। पद्मासन, सुखासन आदि में इस प्रकार पंक्तिबद्ध बैठा जाए जिससे एक-दूसरे का स्पर्श न हो। (पंक्तिबद्धता के लिए, आगे-पीछे व बगल में भी देखना चाहिए। विधि सर्वप्रथम त्रिपदी वंदना से करें। विधि-वंदना की मुद्रा (घुटनों के बल पर बैठें, दोनों हाथ जुड़े रहे) त्रिपदी वंदना कराने वाला ॐ ह्रीं श्री-इन तीन शब्दों का उच्चारण करता है। ॐ का उच्चारण हो तब सबके सब एक साथ हाथ जोड़कर घुटनों के बल वंदना की मुद्रा में स्थिर हो जाएं और 'वंदे' शब्द का उच्चारण करें। ह्रीं का उच्चारण होते ही सबके सब एक साथ 'अर्हम' कहते हुए जमीन तक मस्तक को झुकाएं और तब तक झुकाए रखें जब तक श्री का उच्चारण न हो जाए। श्री का उच्चारण होते ही मस्तक को ऊपर उठाते हुए पुनः वंदना की मुद्रा में लौट आएं। इसी तरह दूसरी बार 'वंदे गुरुवरम्' एवं तीसरी बार 'वंदे सच्चं' का उच्चारण किया जाए। सामूहिक णमोक्कार मंत्र का उच्चारण करते हुए सामायिक का प्रत्याख्यान करें। सामायिक स्वीकार करते ही एक लोगस्स का कायोत्सर्ग करें। (एक श्वासोच्छवास में लोगस्स के एक पद का उच्चारण हो, इस रुप में संपूर्ण लोगस्स का कायोत्सर्ग किया जाए। कायोत्सर्ग के बाद सामायिक को चार भागों में विभक्त किया जाए। १. जप योग, २. ध्यान योग, ३. स्वास्थ्य योग, ४. त्रिगुप्ति साधना। १. जपयोग का प्रयोग - समय दस मिनट। ध्यान की मुद्रा में 'अ. सि. आ. उ. सा.' मंत्र का एक स्वर में उच्चारण किया जाए। अ.सि.आ.उ.सा. - अरहंत, सिद्ध, आयरिय, उवज्झाय, साहू पंच परमेष्टी के प्रथम प्रथम अक्षरों से निमित पंचाक्षरी मंत्र है, उच्चारण में प्रत्येक अक्षर के लिए निर्धारित स्थान ध्यान में रहे। बने अदमा स धाय साधना अष्टहासंघद्वारा हम उपकृत हैं। इसरिमा जान खुशी के साथ हमें संघ की सेवा मालनी चाहिया ।।
SR No.009660
Book TitleBane Arham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlka Sankhla
PublisherDipchand Sankhla
Publication Year2010
Total Pages49
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size57 MB
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