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प्रकाशकीय
आचार्य श्री हेमचन्द्र ने वर्द्धमान महावीरकी स्तुतिरूप बत्तीस-बत्तीस श्लोकप्रमाण दो स्तवनोंकी भावपूर्ण विशिष्ट रचना की — प्रथम ' अयोगव्यवच्छेदस्तवन' और द्वितीय 'अन्ययोगव्यवच्छेदस्तवन' । स्याद्वादकी उपयोगिता सिद्ध करनेका अभीष्ट साधन दूसरे स्तवनको जानकर श्रीमल्लिषेणसूरिने उसपर महत्त्वपूर्ण विस्तृत टीका 'स्याद्वादमंजरी' लिखी है । श्रीहेमचन्द्राचार्यकी ' अयोगव्यवच्छेदिकास्तुति' नामक रचना भी इस ग्रन्थके साथ जोड़ दी गई है । ग्रन्थकी उपयोगिताका विशेष अनुभव तो विद्वज्जन स्वयं ही करेंगे।
परमश्रुतप्रभावकमण्डल ( श्रीमद् राजचन्द्र जैनशास्त्रमाला ) की ओरसे अनेक सत्श्रुतरूप ग्रन्थों का प्रकाशन समय-समय पर होता रहा है, जिनमें 'स्याद्वादमंजरी' का प्रथम प्रकाशन इस संस्था द्वारा वीरनिर्वाण सं० २४३६ ( ई० सन् १९१० ) में श्री पं० जवाहिरलालजी शास्त्री तथा पं० वंशीधरजी शास्त्री के सम्पाद - कत्वमें हुआ था । उसके बाद वीर सं० २४६० ( ई० सन् १९३५ ) में श्री जगदीशचन्द्र जैनने बहुत सुन्दर ढंग से नवीन सम्पादन प्रस्तुत किया । अव पुनः दूसरे संस्करणका यह नवीन संशोधित संस्करण तीसरी आवृत्ति के रूप में इस संस्थाको ओरसे प्रकाशित करते हुए हमें प्रसन्नता होती है। अबकी बार डॉ० जगदीशचन्द्र जैन एम० ए०, पी-एच० डी० ने और भी अधिक परिश्रमपूर्वक इस ग्रन्थको सर्वाङ्गसुन्दर बनानेका प्रयास किया है । अतः हम उनका हृदय से आभार मानते हैं ।
इस ग्रन्थका मुद्रणकार्य प्रथम सन्मति मुद्रणालय, वाराणसी में आरम्भ हुआ था, परन्तु कुछ पृष्ठ छपते ही कार्याधिक्यके कारण काम मंद हो गया; अतः इसका मुद्रणकार्य श्री बाबूलाल जैन फागुल्ल, महावीर प्रेस, वाराणसीको सौंपना पड़ा। हमें हर्ष है कि उन्होंने रुचिपूर्वक इस कार्यको यथासम्भव शीघ्र पूर्ण कर दिया है । संस्थाके प्रति उनका यह प्रेम हमें कृतज्ञता ज्ञापन करनेको वाध्य करता है ।
परमश्रुतप्रभावकमण्डलद्वारा जिन ग्रन्थोंका आजतक प्रकाशन हुआ है उनकी सूची इस ग्रन्थके साथ अन्यत्र संलग्न है । ग्रन्थोंका पुनर्मुद्रण व अन्य नवीन ग्रन्थोंका सम्पादन - प्रकाशन भी यथासमय होता रहेगा । विद्वान पाठकों और विद्यार्थियोंको अधिकाधिक लाभ मिले इसीमें हमारे प्रकाशनका श्रम सफल है ।
श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, स्टेशन; अगास, पोस्ट - बोरिया वाया : आनंद (गुजरात )
ता० १-६-१९७०
निवेदक रावजीभाई देसाई