SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 449
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ মুভি ২য় mur अशुद्ध श्रा रामचन्द्र जैनशास्त्रमालायां दापा: वैशापकवचनम् वैशेषिकोंने सङ्घचयाया हत्वाद् अर्थात् परमाणु पृथिवी अर्थात् श्रीमद्गगजचन्द्रजैनशास्त्रमालायां दोपाः वैनाशिकवचनम् वैनाशिकों (बौद्धों) ने सङ्ख्यया हत्वाद् २१-२ और अर्थात् परमाणु पृथिवी अनित्य पृथिवी अर्थात् अन्य. यो. व्य. श्लोक ७ अन्य. यो. व्य. श्लोक ६ १८० १८७ तर्वादि यत्रव श्रद्धादिविधानेन विज्ञानकारो यथा आजवीभावलक्षणः कक्कुट चित्रस्तर अघोत्तरार्द्धव्याख्या प्रामाणेन प्रमाण्य स्थिचाश्चेति तत्त्वार्थराजवतिके १८९ १९० १९२ १९३ २०१ श्लोक ८ श्लोक ८ तैर्वादि यत्रैव श्राद्धादिविधानेन विज्ञानाकारो तथा आर्जवीभावलक्षणः कुक्कुट चित्रस्तरङ्ग अथोत्तरार्द्धव्याख्या प्रमाणेन प्रामाण्य स्थिताश्चेति तत्त्वार्थराजवार्तिके इस की जा सकती क्रमसे अथवा गुणोंका जब स्वानुरक्त उष्णता तादात्म्य ऐसा स्वरूप और इसलिये वाचकमुख्यः २०१ २०९ २१४ २१४ २१५ २१६ २१६ कीजा सकती कमसे अयवा गुणों जव स्वानुरक्त उष्णता तादाम्य ऐस स्वरूव ओर इलिये वाचमुख्यः २१६ २२० २२८ २३८ २४२ २४४
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy